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अरब देश इज़रायल के साथ रिश्ते सामान्य न करें: फ़िलिस्तीनी जिहादे इस्लामी

अरब देश इज़रायल के साथ रिश्ते सामान्य न करें: फ़िलिस्तीनी जिहादे इस्लामी

फ़िलिस्तीनी जिहादे इस्लामी आंदोलन के प्रतिनिधि नासिर अबू शरीफ़ ने कहा कि, उनका संगठन हमास के साथ सभी राजनीतिक और व्यावहारिक स्तरों पर साझेदारी में है। उन्होंने अल-मसीरा चैनल से बातचीत में कहा कि “ट्रंप कुछ इज़रायली क़ैदियों की चिंता करते हैं, जबकि 17 हज़ार से ज़्यादा फ़िलिस्तीनी सालों से इज़रायल की जेलों में कैद हैं।”

अबू शरीफ़ ने अंतरराष्ट्रीय शासन या ग़ाज़ा पट्टी के प्रशासन के लिए किसी पश्चिमी प्रतिनिधि की उपस्थिति को अस्वीकार करते हुए कहा कि “यह पूरी तरह फ़िलिस्तीन का मामला है, और इज़रायल की पूरी तरह वापसी की गारंटी ज़रूरी है। इस पर मिस्र में बातचीत चल रही है।” उन्होंने बताया कि “इज़रायली समाज के भीतर अब नफ़रत और अलगाव की भावना तेज़ी से बढ़ रही है। अमेरिका और पश्चिमी देशों की जनता में भी इज़रायल के प्रति दृष्टिकोण में बड़ा बदलाव आया है, हालांकि उनकी सरकारें अब भी ज़ायोनी सोच की गुलाम हैं।”

जिहादे इस्लामी के प्रतिनिधि ने कहा, “अमेरिका और पश्चिम भरोसेमंद नहीं हैं। अरब दुनिया में दुर्भाग्य से कमजोरी और बिखराव है, जिसका फ़ायदा इज़रायल को मिला है। सबसे कम उम्मीद यह थी कि, अरब देश फ़िलिस्तीनियों के साथ खड़े होंगे, लेकिन हक़ीक़त इसके उलट है।”

उन्होंने कहा कि “ईसाई इंजीलवादियों के कारण अमेरिका में इज़रायल के प्रति धार्मिक प्रेरणाएँ हैं, इसलिए इस सोच से छुटकारा मुश्किल है। हम फ़िलिस्तीन की जनता के हर समर्थन और नरसंहार के ख़िलाफ़ किसी भी सशक्त रुख़ का स्वागत करते हैं।” अबू शरीफ़ ने साफ़ कहा कि “हम नहीं चाहते कि अरब देश फ़िलिस्तीनियों के बदले कुछ भी हासिल किए बिना इज़रायल से रिश्ते सामान्य करें।” उन्होंने बताया कि “अमेरिका कभी मध्यस्थ नहीं रहा, बल्कि इज़रायल के औपनिवेशिक ‘ग्रेटर इज़रायल’ प्रोजेक्ट का हिस्सा है।”

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि “अगर अमेरिका और पश्चिम का समर्थन न होता तो इज़रायल किसी भी जंग में टिक नहीं सकता था। इज़रायल पूरी तरह अमेरिका पर निर्भर है।” अबू शरीफ़ ने अरब देशों को सलाह दी कि “उन्हें इज़रायल से अपने राजनीतिक और राजनयिक संबंध तोड़ देने चाहिए थे, जैसा यमन ने किया। यमन ने लंबे युद्ध के बावजूद अपनी गरिमा और इज़्ज़त पाई है, क्योंकि उसने इज़रायल और अमेरिका के ख़िलाफ़ अपना फ़र्ज़ निभाया।”

उन्होंने कहा कि “हमें अरब फ़ौजों की नहीं, बल्कि उनके सख़्त राजनीतिक, आर्थिक और राजनयिक रुख़ की ज़रूरत है। यह मूर्खता है कि किसी फ़िलिस्तीनी से पूछा जाए कि, वो इज़रायल को क्यों उकसाते हैं — जबकि उसी ने हमारी ज़मीन पर क़ब्ज़ा कर रखा है।” अबू शरीफ़ ने बताया कि “ऑपरेशन तूफ़ान-ए-अक़्सा किसी एक जुल्म का जवाब नहीं, बल्कि दशकों की हत्या और बेदखली का जवाब था।” उन्होंने कहा कि “अगर अरब जनता सच में प्रतिरोध के पीछे खड़ी होती, तो हालात बिल्कुल अलग होते।”

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