हमास विरोधी प्रदर्शन दरअसल “शैडो यूनिट” की चाल थी: इज़रायली बंदी
ग़ाज़ा से रिहा हुए एक इज़रायली सैनिक ने खुलासा किया है कि जिस “हमास विरोधी प्रदर्शन” को इज़रायली मीडिया ने सात महीने पहले बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया था, वह असल में हमास की “यूनिट अल-ज़िल्ल” यानी “यूनिट ऑफ शैडो” की एक रणनीति थी। इस नकली प्रदर्शन के ज़रिए हमास ने अपने बंदियों को गुपचुप तरीके से एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाया — और इज़रायली मीडिया ने उसी को “जनता का विरोध” समझकर जश्न मनाया।
करीब सात महीने पहले सऊदी चैनल “अल-अरबिया” और कई इज़रायली मीडिया हाउसों ने दावा किया था कि ग़ाज़ा में हमास के ख़िलाफ़ जनता सड़कों पर उतर आई है। अब हाल ही में रिहा हुए एक इज़रायली सैनिक की गवाही से पता चला है कि यह पूरा प्रदर्शन हमास की योजना के तहत रचा गया नाटक था।
इस सैनिक ने बताया कि “यूनिट ऑफ शैडो” के सदस्य भीड़ में शामिल थे और उन्होंने बेइत-लहया, बेइत-हनून से लेकर ख़ान-यूनुस तक का रास्ता कवर किया। इस दौरान कुछ इज़रायली बंदियों को नकाब पहनाकर भीड़ के बीच से होते हुए एक घर तक पहुँचाया गया और फिर टनलों के ज़रिए दूसरे इलाकों में सुरक्षित ले जाया गया। इज़रायली ड्रोन और निगरानी तंत्र को इस पूरी गतिविधि का कोई पता नहीं चला।
उसके मुताबिक़ कुछ बंदियों ने खुद नारों और प्रदर्शन के निर्देशन में हिस्सा लिया ताकि वे पूरी तरह आम लोगों में घुल-मिल जाएँ। यह ऑपरेशन सिर्फ़ बंदियों को सुरक्षित पहुँचाने के लिए नहीं था, बल्कि इसके ज़रिए ग़ाज़ा में मौजूद इज़रायली एजेंटों और मुख़बिरों की पहचान भी की गई। जिनमें “अबू शबाब” और “दग़मश” जैसे गुटों से जुड़े लोग शामिल थे, जिन पर बाद में कार्रवाई की गई।
अब वही “यूनिट ऑफ शैडो” ग़ाज़ा के भीतर जासूसों और ग़द्दारों की सफ़ाई का मिशन चला रही है — एक ऐसा मिशन जिसने दुनिया की सबसे उन्नत ख़ुफ़िया एजेंसियों को भी हैरान कर दिया है।

