ग़ाज़ा नरसंहार के बीच, इज़रायली सेना प्रमुख की इस्तीफ़े की धमकी
ग़ाज़ा युद्ध में लगातार मिल रही शर्मनाक शिकस्त और नेतन्याहू सरकार की तानाशाही के चलते इज़रायली सेना के भीतर बग़ावत के सुर तेज़ हो गए हैं। खुद सेना प्रमुख एयाल ज़मीर ने इस्तीफ़े की धमकी देकर साफ कर दिया है कि, इज़रायली सत्ता अब अपने ही अधिकारियों की सहनशक्ति की हदें पार कर चुकी है।
इज़रायली चैनल 12 के मुताबिक़, ज़मीर और सरकार के बीच तनाव इस कदर बढ़ चुका है कि सेना प्रमुख ने कैबिनेट से दो टूक कहा कि, अब और बहाने नहीं चलेंगे — ग़ाज़ा युद्ध को लेकर सरकार को खुलकर और ज़िम्मेदारी से फ़ैसला लेना होगा।
दरअसल, यह टकराव उस वक़्त और खुलकर सामने आया जब एक कैबिनेट मीटिंग में ज़मीर ने कहा कि ग़ाज़ा पर पूरी तरह क़ब्ज़ा करना सालों का काम है, और फ़िलहाल इज़रायल को सीमित कार्रवाई पर टिके रहना चाहिए। लेकिन नेतन्याहू के कट्टरपंथी मंत्री बेज़ालेल स्मोट्रिच आगबबूला हो गए — और ज़मीर पर झूठा आरोप लगाने लगे कि, वो तीन महीने में भी हमास को नहीं झुका पाए!
सच ये है कि इज़रायल की ‘गिदोन ऑपरेशन’ नाम की दंभ भरी मुहिम महीनों से चल रही है, लेकिन अब तक न तो एक भी बंदी सैनिक को छुड़ाया जा सका है, और न ही ग़ाज़ा के प्रतिरोध समूहों को तोड़ा जा सका है। नेतन्याहू प्रशासन के चेहरे पर हताशा साफ़ नज़र आ रही है, लेकिन वह अपनी इस कमज़ोरी को छुपाने के लिए लगातार ग़ाज़ा के बेगुनाहों की हत्या कर रहा है।
अब खुद इज़रायली सिस्टम के भीतर से आवाज़े उठ रही हैं कि यह युद्ध एक हताश, अहंकारी शासक का ज़िदी अभियान बन चुका है — जो न तो सैन्य दृष्टि से तर्कसंगत है और न ही नैतिक दृष्टि से जायज़। वहीं दूसरी ओर, ग़ाज़ा की प्रतिरोधी ताक़तें बार-बार दोहराती रही हैं कि बंदियों की वापसी, ग़ाज़ा से पूरी वापसी, पुनर्निर्माण, क़ैदियों की रिहाई और मानवीय सहायता के बिना कोई समझौता संभव नहीं — और यही सच्चा न्याय है।

