अमेरिका को ईरान पर हमले की क़ीमत हर हाल में चुकानी होगी: तेहरान
रविवार को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने वह कर डाला, जिसके खिलाफ पूरी दुनिया और ख़ास तौर पर खुद उनके अमेरिकी मतदाता लगातार चेतावनी दे रहे थे। उन्होंने अमेरिकी B-2 बॉम्बर्स को ईरान भेज कर सीधे तौर पर इज़रायल के युद्ध में शामिल किया और ईरान की तीन परमाणु सुविधाओं पर हमला किया। इसके बाद उन्होंने अपनी सोशल मीडिया साइट पर इस हमले को “शानदार सैन्य सफलता” बताया और दावा किया कि ईरान की मुख्य परमाणु संवर्धन सुविधाएं “पूरी तरह तबाह” कर दी गई हैं।
हालांकि, यह समझना मुश्किल नहीं है कि ट्रंप का यह दावा ग़लत है। जिन दो ठिकानों, इस्फहान और नतंज पर उन्होंने हमला किया, उन पर पहले ही शुक्रवार को इज़रायल हमला कर चुका था और वहां से संवर्धित यूरेनियम और ज़रूरी तकनीक पहले ही हटा ली गई थी। फोर्दो पर हमला नया था, लेकिन उपल्ब्ध सैटेलाइट चित्रों से पता चलता है कि वहां सिर्फ एक प्रवेश और एक निकासी द्वार को नुकसान पहुंचा है, जबकि मुख्य ठिकाना, जो पहाड़ के नीचे कई मीटर गहराई में स्थित है, पूरी तरह सुरक्षित है।
स्थानीय लोगों द्वारा दूर से ली गई फोर्दो की वीडियो में भी धुआं या आग का कोई चिन्ह नहीं दिखाई दिया। पास के शहर क़ुम में आम जनजीवन सामान्य रहा, जिससे स्पष्ट है कि जनता इस युद्ध की स्थिति को स्वीकार कर चुकी है जो 13 जून से इज़रायली हमले के साथ शुरू हुआ था।
युद्ध से पहले ईरान और अमेरिका के बीच अप्रत्यक्ष परमाणु वार्ताएं जारी थीं। ईरानी विदेश मंत्री अब्बास अराक़ची ने अंकारा में OIC की बैठक में कहा कि अमेरिका ने रविवार को जो हमले किए और जिन हमलों में वह पहले से इज़रायल की मदद कर रहा था, वे दरअसल ईरान की परमाणु सुविधाओं को नहीं, बल्कि कूटनीति को नष्ट करने के लिए थे। ईरान के स्वास्थ्य मंत्रालय के ताज़ा आंकड़ों के अनुसार, अब तक इस युद्ध में कम से कम 400 नागरिक मारे जा चुके हैं और 2,000 घायल हुए हैं।
अमेरिका लंबे समय से यह दावा कर रहा था कि वह इज़रायल के शुरुआती हमलों में शामिल नहीं था, लेकिन रविवार के हमले ने इन दावों की सच्चाई उजागर कर दी। ईरानी राष्ट्रपति मसऊद पज़ेश्कियान ने कहा कि अमेरिका शुरू में अपनी भूमिका छुपा रहा था, लेकिन जब इज़रायल की हालत बिगड़ने लगी, तो उसने सीधे युद्ध में उतरने का फैसला किया।
विश्लेषकों का मानना है कि इज़रायल ने जो शुरुआती हमले किए, जिनमें ईरानी सैन्य जनरलों को उनके घरों में निशाना बनाया गया, उनका मकसद लंबे युद्ध की तैयारी नहीं था, बल्कि ईरान को अस्थिर करना और जनता को सरकार के खिलाफ खड़ा करना था। लेकिन यह रणनीति उलटी पड़ी। ईरान और उसकी सेना ने उसी दिन जवाबी हमला शुरू कर दिया और इज़रायल में तबाही मचाई। इसके बाद अमेरिका को इज़रायल की “जीत” का दिखावा करने के लिए सीधे हस्तक्षेप करना पड़ा।

