60% इज़रायली, ग़ाज़ा में युद्ध-विराम और बंदियों की रिहाई के पक्ष में
इज़रायली नेटवर्क आई24 ने हाल ही में एक सर्वेक्षण के नतीजे प्रकाशित किए हैं, जिनके अनुसार, 53 प्रतिशत इज़रायली नागरिक इस राय के हैं कि सभी इज़रायली बंदियों की रिहाई और युद्ध को समाप्त किया जाना चाहिए, भले ही हमास सत्ता में बना रहे। यह आंकड़ा इस बात की ओर इशारा करता है कि इज़रायल में एक बड़ा तबका अब युद्ध को समाप्त करने और अपने नागरिकों को सुरक्षित वापस लाने को प्राथमिकता दे रहा है।
इस सर्वेक्षण से यह भी पता चला कि 60 प्रतिशत ज़ायोनी नागरिक ग़ाज़ा युद्ध को फिर से शुरू करने के पक्ष में नहीं हैं, जो यह दर्शाता है कि लंबे समय से चल रहे इस संघर्ष से वहां के नागरिकों में थकान और असंतोष बढ़ रहा है। इसके विपरीत, केवल 25 प्रतिशत लोग ही युद्ध को फिर से शुरू करने के समर्थक हैं, जो बताता है कि इज़रायली समाज में युद्ध को लेकर गहरे मतभेद मौजूद हैं।
हमास के वरिष्ठ नेता का सख्त संदेश
इस बीच, हमास के वरिष्ठ नेता महमूद मरदावी ने बीती रात एक महत्वपूर्ण बयान दिया। उन्होंने कहा कि जब तक हमास द्वारा छोड़े गए छह इज़रायली बंदियों के बदले फ़िलिस्तीनी क़ैदियों को रिहा नहीं किया जाता, तब तक किसी भी प्रकार की बातचीत दुश्मन के साथ मध्यस्थों के ज़रिए नहीं होगी। उनका यह बयान इज़रायल पर दबाव बनाने के उद्देश्य से आया है, जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि हमास अपनी शर्तों से पीछे हटने के मूड में नहीं है।
मरदावी ने यह भी कहा कि हम मध्यस्थों से मांग करते हैं कि वे इज़रायल को समझौते के क्रियान्वयन के लिए बाध्य करें। उन्होंने इशारा किया कि अगर इज़रायली शासन समझौते का पालन नहीं करता, तो कोई भी नया समझौता संभव नहीं होगा।
इज़रायल की हठधर्मी और बातचीत से बचने की नीति
ग़ौरतलब है कि युद्ध-विराम समझौते के दूसरे चरण की वार्ता शुरू करने के लिए तय समय-सीमा को दो सप्ताह से अधिक का समय बीत चुका है, लेकिन अब तक इज़रायल ने वार्ता दल भेजने से इनकार किया है। इससे यह साफ़ होता है कि इज़रायली सरकार इस मुद्दे पर या तो दुविधा में है या फिर जानबूझकर इसे लंबा खींच रही है।
विश्लेषकों का मानना है कि इज़रायल की यह नीति युद्ध को जारी रखने और ग़ाज़ा में अधिक सैन्य दबाव बनाने की रणनीति का हिस्सा हो सकती है। हालांकि, अगर इज़रायल जनता के इस बढ़ते असंतोष को नजरअंदाज करता है, तो उसकी सरकार पर भी आंतरिक दबाव बढ़ सकता है, जिससे वह युद्ध नीति पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर हो सकता है।


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