ग़ाज़ा युद्ध में लौटने से इनकार करने पर 6 इज़रायली सैनिकों पर मुक़दमा
इज़रायली सरकार और सेना की सच्चाई अब खुलकर सामने आने लगी है। हिब्रू चैनल कान की रिपोर्ट के मुताबिक़ गिवाती ब्रिगेड के छह सैनिकों ने साफ़ कहा कि वे अब ग़ाज़ा युद्ध में हिस्सा नहीं ले सकते। लगातार दो साल तक खून-खराबे, बच्चों और महिलाओं की लाशें और निर्दोषों का कत्लेआम देखने के बाद ये सैनिक मानसिक तौर पर टूट गए। लेकिन मानवता की इस पुकार को सुनने के बजाय इज़रायली सेना ने उन्हें अदालत में खड़ा कर जेल भेज दिया।
रिपोर्ट बताती है कि इन सैनिकों को करीब एक महीने पहले जबालिया में भेजा जाना था, लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया और कहा कि, वे गहरी थकान और मानसिक संकट से गुज़र रहे हैं। सेना ने उन्हें अस्थायी तौर पर दूसरे कामों में लगाया, लेकिन जैसे ही उनकी बटालियन ग़ाज़ा से लौटी, उन्हें “आदेश न मानने” के अपराध में कठोर सज़ाएँ सुनाई गईं। तीन सैनिकों को 10 दिन की कैद, दो को निलंबन की सज़ा और एक को दोबारा मुक़दमे का इंतज़ार है।
ये वही सैनिक हैं जिन्होंने युद्ध की शुरुआत से ग़ाज़ा के अंदर दर्जनों अभियानों में हिस्सा लिया था। उनके दो साथी लड़ाई में मारे गए—एक ख़ान यूनुस में और दूसरा जबालिया में। यानी मौत, खून और बर्बादी ने उनकी रूह को झकझोर दिया। चौंकाने वाली बात यह भी है कि शुजाईया में तलाशी के दौरान एक सैनिक ने केवल चीख़ें सुनकर ही ग्रेनेड फेंक दिया।
यह घटना इज़रायली सैनिकों पर बढ़ते मानसिक दबाव और भय को दिखाती है, लेकिन इज़रायली हुकूमत की नीतियाँ सैनिकों की मानसिक हालत या उनके इंसानी जज़्बात को नहीं देखतीं। उल्टे, थककर युद्ध से पीछे हटने वालों को जेल की सलाखों के पीछे धकेलती है। इससे साफ़ है कि, यह सरकार अपने ही जवानों को ज़िंदा इंसान नहीं बल्कि युद्ध की मशीनें समझती है।
ग़ाज़ा में लंबे समय से जारी इज़रायल की बर्बर जंग न सिर्फ़ फ़िलिस्तीनी जनता के लिए नरसंहार साबित हो रही है, बल्कि खुद इज़रायली सैनिक भी इस युद्ध की आग में जल रहे हैं। यह युद्ध अब इज़रायली समाज और फौज के अंदर गहरी दरारें पैदा कर चुका है।

