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इस्लामी क्रांति की 46वीं वर्षगांठ और अमेरिका इज़रायल की बेचैनी

इस्लामी क्रांति की 46वीं वर्षगांठ और अमेरिका इज़रायल की बेचैनी

कल 10 फरवरी को ईरान में इस्लामी क्रांति की 46वीं वर्षगांठ धूमधाम और श्रद्धा के साथ मनाई जाएगी। यह दिन 1979 में शाह मोहम्मद रजा पहलवी की सत्ता के पतन और आयतुल्लाह रुहुल्लाह ख़ुमैनी के नेतृत्व में इस्लामी गणराज्य की स्थापना का प्रतीक है। इस दिन को लेकर ईरान में विभिन्न समारोह और रैलियाँ आयोजित की गईं हैं, जिसमें ईरान के सभी प्रदेशों और शहरों में लाखों नागरिक अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए सड़क पर उतरेंगे।

इस्लामी क्रांति का महत्व
10 फरवरी 1979 को स्वर्गीय आयतुल्लाह ख़ुमैनी के नेतृत्व में हुआ यह क्रांतिकारी बदलाव न केवल ईरान के राजनीतिक परिदृश्य को बदलने वाला था, बल्कि यह एक ऐतिहासिक मोड़ था, जिससे पूरे मध्य पूर्व क्षेत्र पर असर पड़ा। इस क्रांति ने ईरान को एक धर्मनिरपेक्ष राजतंत्र से एक इस्लामी गणराज्य में बदल दिया, जहां धार्मिक सिद्धांतों के आधार पर शासन की शुरुआत हुई। आयतुल्लाह खुमैनी के आदर्श और उनके विचारों ने न केवल ईरान बल्कि अन्य देशों में भी एक नई विचारधारा प्रस्तुत किया, जिसे आज भी कई लोग और राष्ट्र मानते हैं।

समारोह और उत्सव
4वीं वर्षगांठ पर आयोजित कार्यक्रमों में बड़ी संख्या में नागरिक हिस्सा लेंगे। तेहरान और अन्य प्रमुख शहरों में आयोजित होने वाली रैलियाँ देश के प्रति लोगों की निष्ठा और इस्लामी क्रांति की सफलता के प्रति उनके समर्थन को प्रदर्शित करेंगी। प्रमुख सरकारी अधिकारी, धार्मिक नेता और राष्ट्रपति मसूद पेज़िश्कियान भी इस दिन के महत्व को रेखांकित करने के लिए सड़कों पर उतरेंगे।

ईरान के लोग इस दिन को एक बड़े ऐतिहासिक घटना के रूप में मनाते हैं और इस्लामी गणराज्य की स्थिरता और मजबूती के लिए अपनी प्रतिबद्धता को दोहराते हैं। इस अवसर पर हर तरफ ईरानी झंडे और तस्वीरों से वातावरण और भी जोशपूर्ण हो जाता है। इस्लामी क्रांति ने केवल ईरान को ही प्रभावित नहीं किया, बल्कि इसका असर विश्व राजनीति और पश्चिमी देशों के साथ संबंधों पर भी पड़ा।

इस क्रांति के बाद, ईरान ने अपनी विदेश नीति में बदलाव किए, जिसमें अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों से दूरियों को बढ़ाने और अपने पड़ोसियों के साथ संबंधों को मजबूती देने की दिशा में कदम उठाए। आज भी, इस दिन को लेकर देश में विशेष सम्मान और गर्व देखा जाता है, और यह ईरान के नागरिकों के लिए राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बना हुआ है।

इस्लामी क्रांति की 46वीं वर्षगांठ पर ईरान में आयोजित उत्सव यह दर्शाते हैं कि देश अपनी क्रांति और धार्मिक नेतृत्व के प्रति कितना प्रतिबद्ध है। यह दिन न केवल ईरानियों के लिए गर्व का विषय है, बल्कि यह दुनिया भर में इस्लामी विचारधारा और स्वतंत्रता के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। इस दिन इरानी जनता सड़कों पर उतरकर इस्लामी गणराज्य ईरान और सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह ख़ामेनेई के प्रति अपना समर्थन व्यक्त करती है।

इन रैलियों में केवल मर्द शामिल नहीं होते बल्कि, महिलाएं, बच्चे सभी प्रकार के छात्रों के साथ साथ सभी प्रमुख धर्मगुरु भी शामिल होते हैं। स्वतंत्रता दिवस पर पूरी दुनियां में मनाया जाने वाला यह सबसे अनोखा स्वतंत्रता दिवस है। इसकी पहली सबसे बड़ी विशेषता यह है कि, इस स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर केवल आम जनता सड़कों पर उतरकर जश्न मनाती है। ईरानी जनता, इस दिन यूरोपीय देशों के उस “दुष्प्रचार” को पूरी तरह बेनक़ाब कर देती है जिसमें कहा जाता है कि ईरानी जनता इस्लामी हुकूमत से राज़ी नहीं है।

इसकी दूसरी विशेषता यह है कि, इसमें विशेष रूप से अमेरिका और इज़रायल के विरुद्ध नारे लगाए जाते हैं। अमेरिका मुर्दाबाद, इज़रायल मुर्दाबाद के नारों से पूरा ईरान गूंज उठता है। ईरानी जनता इस दिन “स्वतंत्र फ़िलिस्तीन” के नारे लगाते हुए इज़रायल के अत्याचार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करती है। इस मौके पर विशेष रूप से सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह ख़ामेनेई के समर्थन में ईरानी जनता का यह नारा, जिससे पूरी ईरानी जनता उत्साहित हो जाती है ” दस्ते ख़ुदा बर सरे मा, ख़ामेनेई रहबरे मा” और ऐ रहबरे आज़ादे, आमादेईम आमादेईम” बहुत मशहूर है।

पृष्ठभूमि और कारण
ईरान में 1970 के दशक के मध्य तक शाह रेज़ा पहलवी का शासन अत्यधिक विवादास्पद और अस्थिर था। शाह ने पश्चिमी शक्तियों के साथ मिलकर आधुनिकता और प्रगति के नाम पर कई सामाजिक और राजनीतिक सुधार किए थे। हालांकि, इन सुधारों के कारण आम जनता में असंतोष और विरोध की भावना उत्पन्न हो गई थी। शाह के शासन के दौरान धर्मनिरपेक्षता, आर्थिक असमानताएँ, भ्रष्टाचार, और साम्राज्यवाद विरोधी भावनाएँ बढ़ गई थीं।

इसके अलावा, शाह के शासन ने ईरान में इस्लामी परंपराओं और संस्कृति को कमजोर किया था, जो धार्मिक नेताओं और आम जनता के लिए अस्वीकार्य था। आयतुल्लाह रूहुल्लाह ख़ुमैनी, जो उस समय शाही शासन के प्रमुख आलोचक थे, ने इस्लामी शासन की वकालत की थी और उन्होंने शाह के शासकीय सुधारों का विरोध किया था। ख़ुमैनी को शाही शासन ने 1964 में देश से बाहर निर्वासित कर दिया था, लेकिन उन्होंने विदेश से ही क्रांति के विचारों को फैलाया और धार्मिक रूप से प्रेरित आंदोलन का नेतृत्व किया।

इस्लामिक गणराज्य की स्थापना
11 फरवरी 1979 के बाद, आयतुल्लाह ख़ुमैनी ने इस्लामिक गणराज्य की स्थापना की घोषणा की। इस नई राजनीतिक प्रणाली में शरिया कानून को लागू करने, धार्मिक नेताओं को प्रमुख भूमिका देने और पश्चिमी प्रभावों से मुक्त एक स्वतंत्र राज्य बनाने की कोशिश की गई। आयतुल्लाह ख़ुमैनी के नेतृत्व में, ईरान ने एक नया संविधान अपनाया जिसमें धार्मिक प्राधिकरण को सर्वोच्च स्थान दिया गया। इस संविधान के तहत, आयतुल्लाह को देश का सर्वोच्च नेता घोषित किया गया, और सभी सरकारी निर्णयों में धार्मिक नियमों और शरिया कानून का पालन करना आवश्यक था।

आयतुल्लाह ख़ुमैनी का आगमन
11 फरवरी 1979 को जब शाह के समर्थक सैनिकों और सरकारी अधिकारियों ने राजधानी तेहरान में स्थिति पर काबू पाने की कोशिश की, तो क्रांतिकारी ताकतों ने शाही शासन का पूर्णत: पतन कर दिया। इसी दिन को ईरान में इस्लामिक क्रांति की विजय के रूप में मनाया जाता है।

ख़ुमैनी 1 फरवरी 1979 को अपने निर्वासन से पेरिस से वापस ईरान लौटे थे और उन्हें सार्वजनिक रूप से बहुत बड़े स्वागत का सामना करना पड़ा। 11 फरवरी को जब शाह के समर्थकों द्वारा सत्ता के लिए प्रयास किए जा रहे थे, क्रांतिकारियों ने प्रमुख सरकारी इमारतों पर कब्जा कर लिया और शाह के शासन का अंत कर दिया।

इस्लामिक क्रांति का वैश्विक प्रभाव
ईरान की इस्लामिक क्रांति न केवल ईरान के लिए एक ऐतिहासिक मोड़ था, बल्कि इसने समूचे मध्य-पूर्व और इस्लामिक दुनिया पर भी गहरा प्रभाव डाला। ईरान का उदाहरण अन्य इस्लामिक देशों में एक शक्तिशाली प्रेरणा के रूप में सामने आया, जो अपने शासन में इस्लामिक मूल्यों को स्थापित करने के लिए आंदोलित हुए। ईरान की क्रांति ने पश्चिमी देशों, विशेषकर अमेरिका, को भी चिंता में डाल दिया, क्योंकि अब ईरान एक पूर्ण इस्लामी राज्य बन चुका है।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए IscPress उत्तरदायी नहीं है।

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