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उत्तरी ग़ाज़ा में 15 इज़रायली सैनिकों के मारे जाने या घायल होने की सूचना

उत्तरी ग़ाज़ा में 15 इज़रायली सैनिकों के मारे जाने या घायल होने की सूचना

ग़ाज़ा पट्टी के उत्तर में स्थित जबालिया क्षेत्र में फिलिस्तीनी प्रतिरोध बलों द्वारा घात लगाकर किए गए एक संयुक्त हमले में इज़रायली सेना के 15 सैनिक मारे गए या घायल हो गए। फिलिस्तीनी मीडिया ने बताया कि जबालिया में प्रतिरोध बलों और इज़रायली सैनिकों के बीच भीषण झड़पें जारी हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, अल-क़स्साम ब्रिगेड और सराया अल-क़ुद्स के मुजाहिदीनों ने इस क्षेत्र में इज़रायली सैनिकों को घेर लिया है और संघर्ष अभी भी तेज़ी से जारी है।

इज़रायली मीडिया स्रोत ‘हदशोत बेटाखोन’ के अनुसार, इस संयुक्त घात में इज़रायली सेना की 9वीं ब्रिगेड के लगभग 20 सैनिक फंस गए, जिनमें से अधिकतर मारे गए या घायल हुए। कुछ इज़रायली रिपोर्टों के अनुसार, इस ऑपरेशन में फिलिस्तीनी लड़ाकों ने 5 इज़रायली सैनिकों को मार डाला और 10 को घायल कर दिया।

रिपोर्ट में कहा गया कि प्रतिरोध बलों ने पहले सैनिकों को उस समय निशाना बनाया जब वे एक सैन्य जीप से उतरकर एक इमारत की ओर जा रहे थे। इसके बाद उसी इमारत को भी रॉकेट से निशाना बनाया गया जिसमें अन्य इज़रायली सैनिक छिपे हुए थे। जब घायलों और शवों को निकालने के लिए इज़रायली हेलीकॉप्टर आए, तो उन्हें भी सीधे रॉकेट हमले से निशाना बनाकर भागने पर मजबूर कर दिया गया।

अल-क़स्साम ब्रिगेड ने अपने बयान में कहा कि जबालिया शिविर के पूर्वी हिस्से में उसके लड़ाकों ने बेहद नज़दीक से इज़रायली सैनिकों के साथ तीव्र संघर्ष किया, जिसमें उन्हें मार गिराया गया और लड़ाई अब भी जारी है। इस खबर में सामने आया हमला केवल एक सैन्य कार्रवाई नहीं, बल्कि ग़ाज़ा की बहादुर जनता और प्रतिरोध बलों की अदम्य हिम्मत और साहस का प्रतीक है।

जबालिया जैसे तबाह और लगातार निशाने पर रहे क्षेत्र में भी फिलिस्तीनी मुजाहिदीनों ने यह साबित कर दिया कि वे न सिर्फ़ अपनी सरज़मीं की रक्षा करना जानते हैं, बल्कि दुश्मन को उसकी ही रणनीति में फँसाकर जवाब भी दे सकते हैं। अल-क़स्साम ब्रिगेड और सराया अल-क़ुद्स जैसे प्रतिरोध संगठनों का यह समन्वित हमला एक बार फिर यह दर्शाता है कि तकनीकी और सैन्य रूप से कहीं अधिक ताक़तवर इज़रायली सेना भी उस जज़्बे के सामने टिक नहीं सकती, जो ज़ुल्म के ख़िलाफ़ खड़ा हो।

जिस प्रकार से इज़रायली हेलीकॉप्टरों को भी पीछे हटने पर मजबूर किया गया, वह इस बात का प्रतीक है कि ग़ाज़ा के फौलादी इरादों के आगे इज़रायली सेना सेना की सुरक्षा की भी कोई गारंटी नहीं है। यह संघर्ष सिर्फ़ हथियारों का नहीं, हक़ और नाइंसाफ़ी के बीच का है, और इस हमले ने यह साफ़ कर दिया कि ग़ाज़ा आज भी झुका नहीं है।

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