हम सरकारी संपत्तियों पर अवैध क़ब्ज़े को कानूनी दर्जा नहीं दे सकते: उमर अब्दुल्ला
जम्मू और कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने मंगलवार को विधानसभा में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के नेता और विधायक वहीद पारा द्वारा पेश किए गए एक विधेयक को सख्ती से ख़ारिज कर दिया। यह विधेयक राज्य की और काहचराई (चरागाह) भूमि पर वर्षों से क़ब्ज़ा जमाए लोगों को मालिकाना हक देने की मांग करता था। मुख्यमंत्री ने इसे कानून और नियमों के विरुद्ध बताते हुए कहा कि सरकार किसी भी परिस्थिति में राज्य की संपत्तियों पर अवैध कब्जों को कानूनी मान्यता नहीं दे सकती।
मुख्यमंत्री अब्दुल्ला ने अपने संबोधन में स्पष्ट किया कि यह प्रस्ताव मौजूदा भूमि कानूनों के खिलाफ है और अगर इसे स्वीकार किया गया तो इससे सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण को बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने कहा कि भूमि अधिकारों से संबंधित मामलों को केवल क़ानूनी प्रक्रियाओं के तहत ही सुलझाया जाना चाहिए। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि सरकार ऐसा कोई कदम नहीं उठाएगी जिससे राज्य की संपत्तियों पर कब्जा करने वालों को प्रोत्साहन मिले या उन्हें यह संदेश जाए कि अवैध क़ब्ज़ा कर लेना ही समाधान है।
वहीं, विधेयक पेश करने वाले वहीद पारा ने अपनी दलील में कहा कि उनका उद्देश्य अतिक्रमण को वैध ठहराना नहीं है, बल्कि उन हजारों लोगों को राहत देना है जो पिछले बीस से तीस वर्षों से सरकारी और काहचराई भूमि पर बने घरों में रह रहे हैं। पारा का कहना था कि इन लोगों को लगातार अतिक्रमणकारी कहा जा रहा है और उनके घरों पर बुलडोज़र चलाने की धमकी दी जाती है। उन्होंने आग्रह किया कि सरकार ऐसे लोगों को मालिकाना हक दे और उनके घरों की सुरक्षा सुनिश्चित करे ताकि वे सम्मानपूर्वक जीवन जी सकें।
इस मुद्दे ने विधानसभा में तीखी बहस को जन्म दिया। जहाँ एक ओर सरकार का रुख सख्त और कानूनी सीमाओं में बंधा दिखाई दिया, वहीं विपक्ष का कहना था कि लंबे समय से बस चुके लोगों को उजाड़ना सामाजिक और मानवीय दृष्टि से अनुचित है।

