टीपू सुल्तान प्रथम भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, जिसके खिलाफ अंग्रेज़ों के साथ रहे मराठा और निज़ाम
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पहले योद्धा कहलाने वाले शेरे मैसूर टीपू सुल्तान की आज पुण्यतिथि है। टीपू सुल्तान आज ही के दिन साल 1799 में अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे।
अंग्रेजो के खिलाफ देश की आजादी की लडाई लड़ने वाले टीपू सुल्तान को महान देशभक्त राजा समझा जाता रहा है उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ कई सफल युद्ध लडे। देश में दक्षिण पंथी शक्तियों के उदय के साथ ही पिछले कुछ बरसो में दक्षिण पंथी गुटों ने टीपू सुल्तान की छवि को धूमिल करने के बेहूदा प्रयास किए हैं।
टीपू सुलतान 18वीं सदी में अंग्रेज़ों से लड़ते हुए युद्ध मैदान में मारे जाने वाले देश के एकमात्र शासक हैं। बहुत से लोगों को यह नहीं पता कि टीपू सुल्तान एक राष्ट्रीय हीरो थे क्योंकि 19वीं सदी तक ‘एक भारत‘ या भारतीयता की पहचान नहीं थी। तब, मराठा, बंगाली या मैसूर की पहचान थी।
इतिहासकार इस बात को लेकर अचंभित भी हैं कि दक्षिणपंथी धड़े की ओर से यह बात फैलाई जाती है कि टीपू सुल्तान ‘दक्षिण भारत के सबसे क्रूर आक्रमणकारियों में से एक’ थे। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से रिटायर इतिहास की प्रोफ़ेसर जानकी नायर कहती हैं, वह आक्रमणकारी नहीं थे। वह कहीं और से यहां नहीं आए थे. वे अधिकांश भारतीय शासकों की तुलना में अपनी जन्मभूमि से कहीं अधिक जुड़े हुए थे। यह कहना कि वे एक आक्रमणकारी थे, उस व्यक्ति के बारे में पूरी तरह से ग़लत समझ का परिचायक है।
इतिहास के प्रोफ़ेसर एनवी नरसिम्हैया कहते हैं, “टीपू उन महान देशभक्तों में से एक हैं जिन्होंने अंग्रेज़ों, मराठों और हैदराबाद के निज़ाम की संयुक्त सेना के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी। उनके ख़िलाफ़ ये अभियान कि वे देश के दुश्मन नंबर-1 हैं, पूर्वाग्रहों की वजह से है।
प्रोफ़ेसर नरसिम्हैया कहते हैं, “इतिहास नहीं जानने वाले ही कहते हैं कि वो टीपू से नफ़रत करते हैं. लेकिन वो हैदराबाद के निज़ाम के बारे में ठीक ऐसा नहीं कहते जिन्होंने टीपू सुल्तान से लड़ने के लिए अंग्रेज़ों और मराठों के साथ हाथ मिलाया था।
वो श्रृंगेरी मठ का उदाहरण देते हैं जिसके स्वामीजी को पेशवा रघुनाथ राव पटवर्धन के नेतृत्व वाले हमले से ख़ुद को बचाने के लिए करकला भागना पड़ा था। प्रोफ़ेसर नरसिम्हैया कहते हैं, “पेशवा सेना ने मंदिर पर धावा बोला और सभी ज़ेवरात छीन लिए और वहां के देवता को अपवित्र किया।
पेशवा ने जो भी लूट मचाई टीपू सुल्तान ने मंदिर को वो सभी चीज़ें दान कीं। उन्होंने अपनी प्रजा को आशीर्वाद देने का अनुरोध करते हुए मुख्य पुजारी को कई पत्र लिखे। उन्होंने कई अन्य मंदिरों में भी ऐसा ही किया, इनमें नंजुंदेश्वर मंदिर भी शामिल है जिसे वे हकीम नंजुंदा बुलाते थे क्योंकि उनके आंखों की समस्या वहीं ठीक हुई थी।
सरकारी दस्तावेज़ों में भी यह लिखित है कि टीपू सुल्तान ने मेलकोटे, कोल्लूर मूकाम्बिका मंदिर और अन्य कई मंदिरों को भी ज़ेवरात और सुरक्षा प्रदान की थीं। प्रोफ़ेसर नायर कहती हैं इस शख़्सियत ने मौत के बाद कई जीवन देखे हैं। पहले अंग्रेज़ों ने उनके बारे में लिखा कि वह एक अत्याचारी थे। वह अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ लड़े और युद्ध के मैदान में वीरगति को प्राप्त हुए, यह सब मिटा दिया गया, चूंकि वो एक मुसलमान हैं।
शासक के रूप में, उन्होंने अपने प्रशासन में कई नई चीजों को लागू किया और लौह-आधारित मैसूरियन रॉकेट का भी विस्तार किया, जिसे दुनिया का पहला रॉकेट कहा जाता है।
टीपू सुल्तान का एक नाम और है, उन्हें मैसूर के टाइगर के नाम से भी बुलाया जाता है। उन्होंने टाइगर को अपने शासन के प्रतीक के रूप में अपनाया था। इतिहास के अनुसार एक बार टीपू सुल्तान एक फ्रांसीसी मित्र के साथ जंगल में शिकार कर रहे थे, तब वहां बाघ उनके सामने आ गया था, उनकी बंदूक काम नहीं कर पाई और बाघ उनके ऊपर कूद गया और बंदूक जमीन पर गिर गयी। वह बिना डरे, कोशिश करके बंदूक तक पहुंचे, उसे उठाया और बाघ को मार गिराया। तबसे उन्हें मैसूर का टाइगर नाम से बुलाया जाने लगा।
टीपू सुल्तान ने अंग्रेजों के खिलाफ कई युद्ध लड़े, अपने राज्य की पूर्ण रूप से रक्षा की और चौथे एंग्लो-मैसूर युद्ध में लड़ते समय उनकी मृत्यु हो गई।
✍️ रिज़वान हैदर