ऑटो-रिक्शा चालक के पुत्र ने चार्टर्ड एकाउंटेंट बनकर मिसाल पेश की
गरीबी, सीमित साधन और किराए के छोटे कमरे में जीवन बिताने के बावजूद यदि लगन, परिश्रम और माता-पिता का आशीर्वाद साथ हो तो मंज़िल दूर नहीं रहती। चार्टर्ड एकाउंटेंट बने यश किशरोनी की ताज़ा सफलता इसका जीवंत प्रमाण है। 22 वर्ष के इस युवक ने न केवल अपने नगर में बल्कि मेहनतकश और मध्यम वर्ग के परिवारों में नई आशा और उत्साह भर दिया है। यश की उपलब्धि ने सिद्ध कर दिया है कि परिस्थितियाँ चाहे जितनी कठोर हों, यदि संकल्प दृढ़ हो और माता-पिता शिक्षा के लिए त्याग करें तो सफलता अवश्य मिलती है।
इसी जज़्बे ने ऑटो-रिक्शा चालक गणेश लाल किशरोनी के घर को खुशियों से भर दिया। गणेश लाल पिछले 35 वर्षों से भिवंडी में ऑटो-रिक्शा चलाकर परिवार का भरण-पोषण करते आए हैं। वे 1987 में रोज़गार की तलाश में उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ से यहाँ आए। साधन कम थे, आमदनी सीमित थी, पर बच्चों की शिक्षा के सपने बड़े थे। आज उन्हीं सपनों का फल यश के रूप में उनके सामने है, जो हाल ही में चार्टर्ड लेखाकार बनकर उभरा है।
यश ने अपनी पढ़ाई नगर के पी-आर विद्यालय (मराठी माध्यम) से आरंभ की और फिर स्वयंसिद्धि मित्र संघ महाविद्यालय से स्नातक पूरा किया। घर में तंगी होने पर भी माता-पिता ने उसे पढ़ाई से कभी नहीं रोका। यश ने भी दिन-रात परिश्रम करके चार्टर्ड लेखाकार परीक्षा की कठिन राहें पार कीं।
अपनी सफलता पर यश का कहना है, “मेरे माता-पिता ने अपनी जीवन की हर सुविधा त्यागकर मुझे पढ़ाया। उन्हीं की प्रार्थनाओं और हौसले से यह दिन प्राप्त हुआ है।” गणेश लाल अपने पुत्र की उपलब्धि पर भावुक होकर कहते हैं, “हमने हमेशा सोचा था कि बच्चे शिक्षा पाकर आगे बढ़ें। गरीबी ने अवरोध तो डाला, पर हम झुके नहीं। आज यश ने पूरे परिवार का सिर गर्व से ऊँचा कर दिया है।”
यश की यह सफलता केवल उसके परिवार की जीत नहीं, बल्कि उन सभी माता-पिताओं के लिए प्रेरणा है जो दिन-रात मेहनत कर अपने बच्चों का भविष्य सँवारने का प्रयास कर रहे हैं। उसने सिद्ध कर दिया है कि शिक्षा में किया गया निवेश कभी व्यर्थ नहीं जाता और परिश्रम का फल अवश्य मिलता है।

