लोकतंत्र की बुलंदी और संविधान की रक्षा सबसे आवश्यक: अरशद मदनी
देश की मौजूदा चिंताजनक हालात की ओर इशारा करते हुए जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि इस समय देश की हालत जितनी चिंताजनक है, उसकी मिसाल इतिहास में नहीं मिलती। इस समय जो घटनाएँ एक के बाद एक हो रही हैं, उससे अब कोई संदेह नहीं रह गया है कि भारत, फासीवाद की गिरफ्त में जा चुका है।
उन्होंने आगामी 3 नवंबर को इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में जमीयत उलेमा-ए-हिंद की होने वाली विशाल कांफ्रेंस की तैयारी के सिलसिले में जमीयत के कार्यालय में देश के विभिन्न राज्यों से आए जमीयत उलेमा-ए-हिंद के जिम्मेदारों और पदाधिकारियों से कांफ्रेंस के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए यह बात कही। उन्होंने कहा कि नित नए विवाद खड़े करके न केवल मुसलमानों को उकसाने की कोशिशें हो रही हैं, बल्कि उन्हें अलग-थलग कर देने की योजनाबद्ध साजिशें भी हो रही हैं।
धार्मिक नफरत और कट्टरता को हर स्तर पर बढ़ावा दिया जा रहा है। एकता और भाईचारे को समाप्त करने के लिए लोगों के दिलों में नफरत के बीज बोए जा रहे हैं। एक खास समुदाय को निशाना बनाने के लिए आए दिन नए-नए कानून बनाए जा रहे हैं। न्याय का गला घोंटा जा रहा है और संविधान की सर्वोच्चता को समाप्त कर न्याय और कानून के शासन की जगह तानाशाही रवैया अपनाकर लोगों में भय और आतंक फैलाया जा रहा है।
मौलाना मदनी ने कहा कि ऐसे में जमीयत उलेमा-ए-हिंद चुप नहीं बैठ सकती। आज जिस आज़ादी और लोकतंत्र का पूरी दुनिया में जोर-शोर से ढिंढोरा पीटा जा रहा है, यह हमारे बुजुर्गों और पूर्वजों की लंबी जद्दोजहद और कुर्बानी का नतीजा है। उन्होंने कहा कि आज़ादी की जंग में कुर्बानी देने वाले महात्मा गांधी, मौलाना मदनी, मौलाना आज़ाद और मुफ्ती किफायतुल्लाह ने जिस भारत का सपना देखा था, वह नफरत और ज़ुल्म का भारत कभी नहीं था।
हमारे बुजुर्गों ने ऐसे भारत का सपना देखा था, जिसमें रहने वाले सभी लोग जाति, बिरादरी और धर्म से ऊपर उठकर शांति और सद्भाव के साथ रह सकें। इसलिए हम इस आजादी को चुपचाप बर्बाद और तबाह होते हुए नहीं देख सकते। उन्होंने कहा कि होने वाली कांफ्रेंस का मुख्य उद्देश्य देश में लोकतंत्र की सर्वोच्चता और संविधान की सुरक्षा को सुनिश्चित करना है, साथ ही शांति और भाईचारे की सदियों पुरानी परंपरा को फिर से जीवित करना है।
मौलाना मदनी ने यह भी कहा कि वक्फ संशोधन बिल की आड़ में वक्फ संपत्तियों को हड़पने और हमें इस बेशकीमती विरासत से महरूम कर देने की जो साजिश हो रही है, उसे भी उजागर करना जरूरी है। उन्होंने कहा कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने हर दौर में (1923 से 2013 तक) वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा के लिए प्रभावी कदम उठाए हैं।