विशालगढ़ में अतिक्रमण को लेकर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को लगाई फटकार
महाराष्ट्र: कोल्हापुर जिले के विशालगढ़ में 14 जुलाई को बीजेपी नेता की अगुवाई में शरारत, मस्जिद और अल्पसंख्यकों की संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के बाद सरकार की ओर से शुरू की गई विध्वंस कार्रवाई पर शुक्रवार को बॉम्बे हाईकोर्ट ने रोक लगा दी। साथ ही एकनाथ शिंदे सरकार और कोल्हापुर प्रशासन को कड़ी फटकार लगाई है। अल्पसंख्यकों पर दिनदहाड़े किए जाने वाले हमलों और हिंसा के वीडियो और तस्वीरें देखने के बाद बेंच के जजों ने स्थानीय पुलिस स्टेशन के वरिष्ठ निरीक्षक को अगली सुनवाई के दौरान अदालत में उपस्थित होकर यह बताने का आदेश दिया कि इस संबंध में क्या कार्रवाई की गई है। हाईकोर्ट विशेष रूप से मानसून में की जा रही विध्वंस कार्रवाई पर कड़ी नाराजगी व्यक्त कर रहा था। उसने सरकार पर सवालों की बौछार कर दी और उसके हर जवाब को रिकॉर्ड पर ले लिया।
वीडियो और तस्वीरें देखने के बाद अदालत ने पूछा कि ये लोग कौन हैं और मस्जिद पर क्यों चढ़ गए हैं? उनके खिलाफ क्या कार्रवाई की गई? उकसाने वाले नारों और धमकियों पर भी अदालत ने सरकार से कई सवाल पूछे, जिन पर सरकारी वकील कई बार झेंपते नजर आए। अदालत ने कहा कि कानून-व्यवस्था बनाए रखना सरकार की जिम्मेदारी है और ये वीडियो देखने के बाद ऐसा महसूस नहीं हो रहा है कि सरकार कहीं मौजूद है। सरकार क्या कर रही थी?
हिंसा के दौरान पुलिस अधिकारी मूकदर्शक बने खड़े थे
स्पष्ट रहे कि विशालगढ़ में निवास करने वाले कई मुसलमानों द्वारा वरिष्ठ वकील सतीश तलीकर के माध्यम से दाखिल की गई याचिका पर सुनवाई के दौरान अदालत को बताया गया कि वीडियो में दिख रहा है कि हिंसा के दौरान पुलिस अधिकारी मूकदर्शक बने खड़े थे। जस्टिस बीपी कुलाबावाला और जस्टिस फ़िरदौस पूनावाला की हाई कोर्ट की दो सदस्यीय बेंच ने विशालगढ़ में कानून-व्यवस्था बनाए रखने में विफल रहने पर राज्य सरकार की कड़ी आलोचना की। जजों ने सवाल किया कि मानसून में विध्वंस कार्रवाई क्यों की जा रही है? जब राज्य के सरकारी वकील प्रिया भूषण काकड़े ने अदालत को बताया कि केवल उन्हीं दुकानों को तोड़ा गया है जिनके विध्वंस पर रोक नहीं लगाई गई थी, तो जस्टिस कुलाबावाला ने कहा कि “यदि वास्तविकता इसके विपरीत हुई तो हम आपके सरकारी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने और उन्हें जेल भेजने से भी नहीं हिचकिचाएंगे।”
याचिकाकर्ताओं ने अदालत में एक शपथ पत्र दाखिल किया है जिसमें विस्तार से बताया गया है कि कैसे पहले 80 से 100 लोगों का एक समूह विशालगढ़ में अल्पसंख्यकों और उनकी संपत्ति को निशाना बनाने के लिए पहुंचा और फिर यह भीड़ बढ़ती गई और सैकड़ों लोगों की भीड़ ने गजापुरा में मस्जिद को भी नुकसान पहुंचाया। इसके बाद वहां बीजेपी के पूर्व सांसद छत्रपति संभाजी राजे पहुंच गए जिन्होंने भीड़ को इस काम के लिए उकसाया था। इसके बाद मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने संभाजी को आश्वासन दिया कि दूसरे दिन से वहां विध्वंस किया जाएगा। इस आश्वासन के मुताबिक दूसरे ही दिन विध्वंस कार्रवाई शुरू कर दी गई और विशालगढ़ किले के आसपास मौजूद अल्पसंख्यकों की 60 से 70 संपत्ति को ध्वस्त कर दिया गया।
हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त जज की अध्यक्षता में SIT से कराई जाए जांच
इन याचिकाकर्ताओं ने 2023 में ही एक याचिका दाखिल की थी। इस पर सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने उस स्थान पर विध्वंस कार्रवाई पर रोक लगा दी थी, इसके बावजूद सरकार द्वारा दुकानें तोड़ी गईं। याचिकाकर्ताओं ने यह मांग भी की है कि हिंसा की जांच हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त जज की अध्यक्षता में ‘विशेष जांच दल’ (SIT) से कराई जाए क्योंकि उन्हें पुलिस पर भरोसा नहीं है। उनकी यह भी मांग है कि विशालगढ़ किले को ऐतिहासिक धरोहर के श्रेणी से निकाला जाए क्योंकि 1999 में इस किले को ऐतिहासिक धरोहर घोषित किया गया था, जबकि इस किले के आसपास जो भी आवासीय मकान और दुकानें हैं, वे सभी 1999 से पहले निर्मित हैं इसलिए 1999 में सरकार द्वारा जारी अधिसूचना के आधार पर उन्हें वहां से हटाया नहीं जा सकता।