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देश का कर्ज जो 2014 में 6.58 लाख करोड़ था अब 171 लाख करोड़ हो गया: सुप्रिया सुले

देश का कर्ज जो 2014 में 6.58 लाख करोड़ था अब 171 लाख करोड़ हो गया: सुप्रिया सुले

महाराष्ट्र की सांसद सुप्रिया सुले ने लोकसभा में सरकार के बड़े-बड़े दावों की पोल खोलते हुए खुद ही आंकड़े पेश किए। उन्होंने सरकार से कई कई तीखे सवाल पूछे। उन्होंने लोकसभा में प्रश्नकाल के समय कहा, मेरे साथी अनुराग ठाकर ने एक लंबा-चौड़ा भाषण दिया और कृषि से लेकर एमएसएमई और निवेश तक पर कई महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं। पता नहीं उन्हें आंकड़े कौन मुहैया करा रहा है, लेकिन यहां मैं उनके सामने कुछ गंभीर आंकड़े पेश करने की कोशिश करूंगी। इस देश पर कर्ज तेजी से बढ़ रहा है। आज यहां जितने लोग बैठे हैं, उनमें से हर एक के सिर पर कर्ज है, जिस पर ब्याज की मार पड़ चुकी है।

फिलहाल, मैं अपने भाषण की शुरुआत वित्त मंत्री को बधाई देते हुए करूंगी, जिन्होंने अपना आठवां बजट पेश किया है। हमें उनसे बड़ी उम्मीदें थीं क्योंकि यह संसदीय चुनाव में जीत के बाद पहला बजट है, लेकिन हमें स्पष्ट रूप से निराशा हुई है। मैं स्पष्ट कर दूं कि मैं विपक्ष की तरफ से आलोचना नहीं कर रही हूं, बल्कि “विकसित भारत” की हितैषी के रूप में कुछ बातें रख रही हूं।

जीडीपी के नए अनुमानों के मुताबिक, विकास दर से जुड़े अनुमान गलत साबित हुए हैं। आपको याद होगा कि पहले जीडीपी के 7.8% की दर से बढ़ने की उम्मीद थी, लेकिन अब अनुमान है कि यह 6.2% की दर से ही बढ़ेगी। रुपये की कीमत लगातार गिर रही है। मुझे आशंका है कि इस गिरावट के जवाब में सत्ता पक्ष की तरफ से वही पुराना बहाना दिया जाएगा कि हर देश में यह हो रहा है। मैं ऐसा जवाब मिलने से पहले ही इसे खारिज कर देना चाहती हूं। एक महीने पहले अमेरिका में सत्ता परिवर्तन के बाद वैश्विक स्तर पर ऐसा हुआ था, लेकिन आज ब्रिटेन इससे बाहर आ चुका है। पाउंड की कीमत डॉलर के मुकाबले बेहतर हुई है।

इसी तरह सिंगापुर की मुद्रा भी डॉलर के मुकाबले 1.0% मजबूत हुई है। यूरो भी मजबूत हुआ है। इसके विपरीत, भारत की मुद्रा कमजोर हो रही है। मैं यहां किसी पर व्यक्तिगत तौर पर आरोप नहीं लगा रही हूं, लेकिन यह बताना चाहती हूं कि अगर अन्य देशों की मुद्राएं मजबूत हुई हैं और सिर्फ भारतीय मुद्रा गिरावट का शिकार है, तो यह बहाना कि, यह वैश्विक स्थिति की वजह से है, बिल्कुल गलत है। मैं यह जानना चाहती हूं कि ऐसा क्यों हो रहा है।

मैं वित्त मंत्री को आयकर से जुड़े फैसले पर बधाई देना चाहती हूं, लेकिन काश वे जीएसटी के बारे में भी कुछ सोचतीं। अगर वे जीएसटी में कुछ राहत देतीं, तो राज्यों के लिए भी अच्छा होता और आम उपभोक्ताओं को भी राहत मिलती।

देश में घरेलू कर्ज 41% बढ़ा है। यह मेरे आंकड़े नहीं हैं, यह आरबीआई का डेटा है। विदेशी निवेश का मामला ले लीजिए। निवेशक अपना पैसा निकाल रहे हैं। 2024-25 की तीसरी तिमाही में कुल मिलाकर 11 बिलियन अमेरिकी डॉलर का विदेशी निवेश भारत से निकाल लिया गया। विदेशों से व्यापार घाटा (यानी आयात ज्यादा और निर्यात कम) बढ़कर 188 बिलियन डॉलर तक पहुंच चुका है। यही वजह है कि रुपये की यह हालत है। मेरा सवाल यह है कि लोग भारत से पैसा निकालकर बाहर क्यों जा रहे हैं?

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