कर्नाटक में मुस्लिम आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट की सख़्त टिप्पणी
कर्नाटक में भाजपा सरकार द्वारा 4 फीसदी मुस्लिम आरक्षण खत्म करने का विवाद बढ़ता जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार (9 मई) को राज्य सरकार के फैसले के खिलाफ सुनवाई 25 जुलाई के लिए टल गई है। नई नीति के आधार पर नौकरी या दाखिला न देने का अंतरिम आदेश जारी रहेगा।
कर्नाटक में 4 फीसदी मुस्लिम आरक्षण खत्म करने का मामले में याचिकाकर्ताओं के वकील दुष्यंत दवे ने कोर्ट में कहा कि लंबित मामले पर बीजेपी के नेता बयान दे रहे हैं.अब इस पर सुप्रीम कोर्ट ने सख़्त टिप्पड़ी करते हुए कहा कि जब मामला कोर्ट में लंबित है तो बीजेपी नेता इस पर बयानबाजी क्यों कर रहे हैं?
जस्टिस के.एम. जोसफ, न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने कहा, “जब मामला कोर्ट में विचाराधीन है। कर्नाटक मुस्लिम आरक्षण पर कोर्ट का आदेश है तो इस मुद्दे पर कोई राजनीतिक बयानबाजी नहीं होनी चाहिए. यह उचित नहीं है. कुछ पवित्रता बनाए रखने की जरूरत है।
दरअसल चार प्रतिशत मुस्लिम आरक्षण को रद्द करने को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने कहा, “कर्नाटक में हर दिन गृहमंत्री अमित शाह बयान दे रहे हैं कि उन्होंने चार प्रतिशत मुस्लिम आरक्षण वापस ले लिया है। ऐसे बयान क्यों दिए जाने चाहिए?”
कर्नाटक सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दवे के बयान पर आपत्ति जताते हुए कहा कि उन्हें ऐसी किसी टिप्पणी की जानकारी नहीं है और अगर कोई कह रहा है कि धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं होना चाहिए तो गलत क्या है और यह एक तथ्य है.
जस्टिस जोसफ ने कहा, “सॉलिसिटर जनरल का कोर्ट में बयान देना कोई समस्या नहीं है लेकिन विचाराधीन मामले पर कोर्ट के बाहर कुछ कहना उचित नहीं है. साल 1971 में, अदालत के आदेश के खिलाफ एक संवाददाता सम्मेलन आयोजित करने पर एक राजनीतिक नेता के खिलाफ अवमानना का मामला लाया गया था।
दवे ने कहा कि ये बयान हर दिन दिए जा रहे हैं. मेहता ने कहा कि कोर्ट को दवे को इस तरह के बयान देने और उसके लिए अदालती कार्यवाही का इस्तेमाल करने से रोकने की जरूरत है. इस पर बेंच ने कहा कि हम इस अदालत को राजनीतिक मंच नहीं बनने देंगे. हम इसके पक्षकार नहीं हैं. हम मामले को स्थगित कर देंगे।