वक्फ संशोधन कानून पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला, पूरी रोक नहीं, तीन प्रावधानों पर स्टे
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को वक्फ (संशोधन) कानून, 2025 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अहम अंतरिम आदेश सुनाया। अदालत ने स्पष्ट किया कि पूरे कानून पर रोक लगाने का अधिकार केवल “रेयरेस्ट ऑफ द रेयर” परिस्थितियों में ही प्रयोग किया जा सकता है, इसलिए संपूर्ण कानून पर रोक नहीं लगाई जाएगी। हालांकि, तीन संशोधनों के अमल पर फिलहाल रोक लगा दी गई है।
सीजेआई बी.आर. गवई और जस्टिस ए.जी. मसीह की पीठ ने कहा कि वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति पर कोई बाधा नहीं है, लेकिन यथासंभव पदेन सदस्य मुस्लिम ही हों। इसी तरह, राज्य वक्फ बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) के रूप में गैर-मुस्लिम की नियुक्ति पर भी अदालत ने रोक नहीं लगाई, पर यह सुझाव दिया कि जहां तक संभव हो, इस पद पर मुस्लिम व्यक्ति की नियुक्ति की जाए।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में इस कानून के खिलाफ कुल पांच प्रमुख याचिकाएं दाखिल की गई थीं। इनमें एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी, कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद, आप विधायक अमानतुल्लाह खान, सिविल राइट्स संगठन “एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स” और जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी शामिल हैं। याचिकाकर्ताओं की ओर से कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी और राजीव धवन ने पक्ष रखा, जबकि केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पैरवी की।
तीन दिन तक चली थी विस्तृत सुनवाई
22 मई को तीन दिन की मैराथन सुनवाई के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा था। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने कानून को मुसलमानों के अधिकारों के खिलाफ बताते हुए अंतरिम रोक की मांग की थी। उनका कहना था कि सरकार गैर-न्यायिक प्रक्रिया से वक्फ संपत्तियों को हड़पना चाहती है और ऐतिहासिक व संवैधानिक सिद्धांतों की अनदेखी की गई है। वहीं, केंद्र ने तर्क दिया कि वक्फ “बाय यूजर” कोई मौलिक अधिकार नहीं है बल्कि 1954 में विधायी नीति द्वारा दिया गया प्रावधान है, जिसे वापस लिया जा सकता है।
राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद बना कानून
केंद्र सरकार ने वक्फ (संशोधन) बिल, 2025 को अप्रैल में अधिसूचित किया था। इसे 5 अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी मिली थी। लोकसभा में यह बिल 288 वोटों से पास हुआ था, जबकि 232 सांसदों ने इसका विरोध किया था।
अदालत की कार्यवाही की झलकियां
16 अप्रैल: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से हलफनामा मांगा और कानून के खिलाफ तीन निर्देश दिए।
17 अप्रैल: SG तुषार मेहता ने कहा कि लाखों सुझावों पर विचार करने के बाद यह कानून बनाया गया है।
25 अप्रैल: केंद्र ने 1332 पन्नों का हलफनामा दाखिल कर कानून को पूरी तरह संवैधानिक बताया।
15 मई: अदालत ने कहा कि अंतरिम राहत देने पर विचार किया जाएगा।
20-22 मई: लगातार तीन दिन सुनवाई चली और दोनों पक्षों ने विस्तृत दलीलें पेश कीं।
क्यों हो रहा विरोध?
कानून का विरोध करने वालों का कहना है कि इसमें कई प्रावधान मुसलमानों के अधिकारों के खिलाफ हैं। जैसे कि गैर-मुस्लिम को वक्फ बोर्ड और CEO पद पर नियुक्त करने का प्रावधान, वक्फ संपत्तियों के निर्धारण की प्रक्रिया में बदलाव और अनुसूचित क्षेत्रों में वक्फ निर्माण पर रोक। याचिकाकर्ताओं के अनुसार, यह संशोधन वक्फ संस्थाओं की स्वायत्तता को प्रभावित करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल केवल तीन प्रावधानों पर रोक लगाई है और साफ कर दिया है कि अंतिम सुनवाई तक यथास्थिति बनी रहेगी। अब मामले की अगली सुनवाई में यह देखा जाएगा कि क्या यह कानून संवैधानिक कसौटियों पर खरा उतरता है या नहीं।

