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सुप्रीम कोर्ट ने असम और पूर्वोत्तर राज्यों में अवैध प्रवासन पर केंद्र सरकार से डेटा मांगा

सुप्रीम कोर्ट ने असम और पूर्वोत्तर राज्यों में अवैध प्रवासन पर केंद्र सरकार से डेटा मांगा

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को 1971 के बाद असम और पूर्वोत्तर राज्यों में अवैध प्रवासन पर केंद्र सरकार से डेटा मांगा है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से यह भी पूछा है कि पूर्वोतर भारत में अवैध प्रवासन या घुसपैठ से निपटने के लिए उसने अब तक क्या कदम उठाए हैं।

सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ ने गुरुवार को केंद्र सरकार से पूछा है कि एक जनवरी, 1966 से 25 मार्च, 1971 के दौरान असम में आए कितने लोगों को भारतीय नागरिकता दी गई है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से 11 दिसंबर तक हलफनामा दाखिल कर इसकी जानकारी देने को कहा है।

सुप्रीम कोर्ट बीते 5 दिसंबर से असम में गैरकानूनी शरणार्थियों से जुड़ी नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है। धारा 6ए को असम समझौते पर हस्ताक्षर के बाद कानून में पेश किया गया था।

इस सुनवाई की कड़ी में ही गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने ये जानकारियां केंद्र सरकार से मांगी है। इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की संविधान पीठ कर रही है।

बता दें कि, 25 मार्च, 1971 बांग्लादेश मुक्ति संग्राम की शुरुआत की तारीख है। नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए के अनुसार, भारतीय मूल के व्यक्ति, जो एक जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 के बीच वर्तमान बांग्लादेश से असम राज्य में आए थे, वे भारत की नागरिकता पाने के पात्र हैं।

वहीं जो व्यक्ति 25 मार्च 971 के बाद असम में आए थे वे इसके पात्र नहीं हैं। उन्हें विदेशी के रूप में निर्वासित किया जा सकता है। 25 मार्च 1971 की कट-ऑफ तिथि के संदर्भ में यह निर्धारित करने के लिए कि क्या व्यक्ति अवैध प्रवासी हैं या भारतीय नागरिक हैं, विदेशी न्यायाधिकरण की स्थापना की गई थी।

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