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विधायकों की अयोग्यता मामले में सुप्रीम कोर्ट का शिंदे खेमे को नोटिस

विधायकों की अयोग्यता मामले में सुप्रीम कोर्ट का शिंदे खेमे को नोटिस

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उद्धव ठाकरे गुट की याचिका पर नोटिस जारी किया है। शीर्ष कोर्ट ने यह नोटिस महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले गुट को ‘असली’ शिवसेना घोषित करने के स्पीकर के आदेश के खिलाफ उद्धव ठाकरे गुट की याचिका पर जारी किया है।

मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने उद्धव ठाकरे गुट की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अभिषेक सिंघवी की दलीलों पर गौर किया। शीर्ष अदालत ने कहा कि याचिका पर बॉम्बे हाई कोर्ट भी सुनवाई कर सकता है। हालाँकि, ठाकरे गुट के वरिष्ठ वकीलों ने इसका विरोध किया और कहा कि शीर्ष अदालत मामले को देखने के लिए बेहतर है।

ठाकरे गुट ने आरोप लगाया है कि एकनाथ शिंदे ने ‘असंवैधानिक रूप से सत्ता हथिया ली’ और ‘असंवैधानिक सरकार’ का नेतृत्व कर रहे हैं। बता दें कि इसी महीने 10 जनवरी को स्पीकर नार्वेकर ने अपने आदेश में सीएम शिंदे सहित सत्तारूढ़ खेमे के 16 विधायकों को अयोग्य ठहराने की ठाकरे गुट की याचिका को खारिज कर दिया था।

उद्धव खेमे ने जून 2022 में शिवसेना में विभाजन के बाद एकनाथ शिंदे गुट को ‘असली शिवसेना’ के रूप में मान्यता देने के महाराष्ट्र अध्यक्ष के आदेश को भी चुनौती दी है। दल-बदल विरोधी कानून के तहत शिंदे और उनके समर्थक विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिका दायर करने के लगभग दो साल बाद स्पीकर का फैसला 10 जनवरी को आया।

महाराष्ट्र स्पीकर राहुल नार्वेकर ने शिंदे और बाग़ी शिवसेना विधायकों के ख़िलाफ़ अयोग्यता याचिकाओं को खारिज कर दिया था। इसके साथ ही उन्होंने उद्धव ठाकरे द्वारा वर्तमान सीएम एकनाथ शिंदे को शिवसेना के नेता के पद से हटाने के फैसले को भी पलट दिया था।

नार्वेकर ने कहा था, ‘यह ध्यान रखना उचित होगा कि शिवसेना के संविधान में पक्ष प्रमुख नामक कोई पद नहीं है (जो कि उद्धव ठाकरे के पास था)। पक्ष प्रमुख की इच्छा राजनीतिक दल की इच्छा का पर्याय नहीं है। पार्टी अध्यक्ष के पास किसी को भी पद से हटाने का अधिकार नहीं है।’ नार्वेकर ने फ़ैसला देने से पहले शिवसेना के संविधान की व्याख्या भी की थी। उन्होंने 2018 में शिवसेना के संविधान में किए गए संशोधन को मानने से इनकार कर दिया।

स्पीकर ने कहा था कि शिवसेना का 2018 का संविधान स्वीकार्य नहीं है और चुनाव आयोग में 1999 में जमा किया गया संविधान ही मान्य होगा। उन्होंने कहा था, ‘प्रतिद्वंद्वी समूहों के उभरने से पहले चुनाव आयोग को आखिरी बार प्रासंगिक संविधान 1999 में सौंपा गया था। मेरा मानना है कि ईसीआई द्वारा विधानसभा अध्यक्ष को दिया गया शिवसेना का संविधान यह तय करने के लिए शिवसेना का प्रासंगिक संविधान है कि कौन सी राजनीतिक पार्टी असली है।’

पिछले साल मई में पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने माना था कि वह एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार को अयोग्य नहीं ठहरा सकती और उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री के रूप में बहाल नहीं कर सकती क्योंकि बाद में विधानसभा में शक्ति परीक्षण का सामना करने के बजाय इस्तीफा दे दिया था।

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