संविधान के तहत राज्यों को खदानों और खनिजों वाली भूमि पर टैक्स लगाने का अधिकार: सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली: खनिजों पर टैक्स वसूलने के मामले पर गुरुवार (25 जुलाई) को सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की बेंच ने फैसला सुनाया है। CJI ने कहा है कि बेंच ने 8:1 के बहुमत से फैसला किया है कि खनिजों पर लगने वाली रॉयल्टी को टैक्स नहीं माना जाएगा। CJI ने कहा है कि माइंस और मिनरल्स डेवलपमेंट एंड रेगुलेशन एक्ट (MMDR) राज्यों की टैक्स वसूलने की शक्तियों को सीमित नहीं करता है। राज्यों को खनिजों और खदानों की जमीन पर टैक्स वसूलने का पूरा अधिकार है। खदानों और खनिजों पर केंद्र की ओर से अब तक टैक्स वसूली के मुद्दे पर 31 जुलाई को सुनवाई होगी।
दरअसल, अलग-अलग राज्य सरकारों और खनन कंपनियों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में 86 याचिकाएं पहुंची थीं। कोर्ट को को तय करना था कि मिनरल्स पर रॉयल्टी और खदानों पर टैक्स लगाने के अधिकार राज्य सरकार को होने चाहिए या नहीं। सुप्रीम कोर्ट में 8 दिन तक चली सुनवाई में केंद्र ने कहा था कि राज्यों को यह अधिकार नहीं होना चाहिए। अदालत ने 14 मार्च को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की बेंच ने गुरुवार को अपने 1989 के संविधान पीठ के फैसले को “गलत” बताते हुए कहा कि खनिजों पर देय रॉयल्टी टैक्स नहीं है। शीर्ष अदालत ने 8:1 के बहुमत के फैसले में यह भी कहा कि संसद के पास संविधान के प्रावधानों के तहत खनिज अधिकारों पर टैक्स लगाने की पावर नहीं है। भारत के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि सिर्फ जस्टिस बी वी नागरत्ना ने असहमति वाला फैसला सुनाया है। लेकिन 8 जज पूरी तरह फैसले से सहमत हैं।
1989 में, सात जजों की बेंच ने माना था कि केंद्र के पास संघ सूची (सूची I) की प्रविष्टि 54 के तहत अधिनियमित कानूनों के अनुसार “खानों और खनिज विकास के विनियमन” पर पहला अधिकार है। राज्यों के पास एमएमडीआरए के तहत केवल रॉयल्टी लेने की पावर है और वे खनन और खनिज विकास पर कोई और टैक्स नहीं लगा सकते हैं। उस समय बेंच ने कहा था कि “हमारी राय है कि रॉयल्टी एक टैक्स है, और रॉयल्टी पर टैक्स होने के कारण रॉयल्टी पर उपकर राज्य विधानमंडल नहीं लगा सकता। क्योंकि इसे केंद्रीय अधिनियम कवर करता है।”
लाइव लॉ और बार और बेंच के अनुसार, सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा, “खनन पट्टे से रॉयल्टी प्रवाहित होती है, यह आम तौर पर निकाले गए खनिजों की मात्रा के आधार पर तय की जाती है। रॉयल्टी की बाध्यता पट्टेदार और पट्टेदार के बीच अनुबंध की शर्तों पर निर्भर करती है और भुगतान सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए नहीं है बल्कि यह विशेष उपयोग शुल्क के लिए है।” सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला ऐतिहासिक है और केंद्र के लिए झटका है। क्योंकि खनिज रॉयल्टी के मामले में केंद्र-राज्य संबंध को अदालत ने शीशे की तरह साफ कर दिया है।