‘सेक्युलर’ और ‘सोशलिस्ट’ शब्द भारतीय संस्कृति के मूल तत्व नहीं: शिवराज सिंह चौहान
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्रीय कृषि मंत्री, शिवराज सिंह चौहान ने दावा किया कि ‘सेक्युलर’ और ‘सोशलिस्ट’ शब्द भारतीय संस्कृति के मूल तत्व नहीं हैं, और इन्हें संविधान से हटाने पर बहस की ज़रूरत है। आरएसएस की मांग के बाद केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान और जितेन्द्र सिंह ने भी इन शब्दों की समीक्षा का समर्थन किया है।
शुक्रवार को वाराणसी (उत्तर प्रदेश) में आयोजित एक कार्यक्रम में बोलते हुए चौहान ने कहा, “सेक्युलर और सोशलिस्ट शब्द भारतीय संस्कृति के मूल तत्व नहीं हैं, और इन्हें संविधान से हटाने पर चर्चा होनी चाहिए।” यह कार्यक्रम 1975 में इंदिरा गांधी सरकार द्वारा लगाए गए आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ के मौके पर आयोजित किया गया था।
सोशल मीडिया पर साझा किए गए एक वीडियो में उन्होंने कहा: “भारतीय संस्कृति का मूल आधार सभी धर्मों के प्रति समान सम्मान है, न कि सेक्युलरिज़्म।”
मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री ने सोशलिज़्म के बारे में कहा कि “हर किसी को अपने जैसा समझना भारतीय विचारधारा की जड़ है। यहां सोशलिज़्म की कोई ज़रूरत नहीं है। हम हमेशा से कहते आए हैं कि सभी के साथ समान व्यवहार होना चाहिए, इसलिए सोशलिस्ट शब्द भी अनावश्यक है।”
इस बीच जम्मू में केंद्रीय मंत्री जितेन्द्र सिंह ने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस के हवाले से कहा कि “हर विचारशील नागरिक” इस बात से सहमत होगा कि ये शब्द असाधारण परिस्थितियों में जोड़े गए थे और मूल संविधान का हिस्सा नहीं थे। इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, उन्होंने कहा: “बीआर अंबेडकर ने दुनिया के सबसे बेहतरीन संविधानों में से एक का निर्माण किया था, तो अगर ये शब्द उनकी सोच का हिस्सा नहीं थे, तो किस सोच के तहत इन्हें जोड़ा गया?”
वहीं शुक्रवार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने आरएसएस की इस मांग की आलोचना करते हुए कहा कि “हिंदुत्व संगठन का नकाब एक बार फिर उतर गया है।” भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने भी कहा कि यह मांग संविधान को कमजोर कर भारत को हिंदू राष्ट्र में बदलने की आरएसएस की पुरानी योजना को उजागर करती है।
गौरतलब है कि 2015 में उस समय विवाद खड़ा हुआ था जब गणतंत्र दिवस पर केंद्र सरकार के विज्ञापन में संविधान की प्रस्तावना से ये दोनों शब्द गायब थे। सितंबर 2023 में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने दावा किया था कि नई संसद में सांसदों को बांटे गए संविधान की प्रतियों में ये शब्द नहीं थे। हालांकि नवंबर में सुप्रीम कोर्ट ने संविधान से इन शब्दों को हटाने की याचिकाओं को खारिज कर दिया था और कहा था कि इतने वर्षों बाद संशोधन को चुनौती देने का कोई वैध आधार नहीं है।

