क़ासिम सुलैमानी के लिए लिखी गई सर्वेश त्रिपाठी की कविता की ईरान में धूम आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष के नायक एवं ईरान के लोकप्रिय जनरल क़ासिम सुलैमानी की शहादत के बाद से ही दुनिया भर में उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है तथा अमेरिकी आतंकवाद की निंदा का क्रम आज भी जारी है ।
क़ासिम सुलैमानी को दुनिया भर में हर समुदाय और वर्ग के लोगों ने श्रद्धांजलि दी। इसी क्रम में भारतीय कवि सर्वेश त्रिपाठी ने फ़ारसी भाषा में एक कविता लिखी थो जो आज भी ईरान के मीडिया और आम लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हुई है।
अमेरिकी हमले में मारेजाने वाले ईरान के लोकप्रिय कमांडर जनरल क़ासिम सुलैमानी को कविता लिखकर श्रद्धांजलि देने वाले सर्वेश त्रिपाठी का शुक्रिया अदा करते हुए ईरान के एक कवि शाबान करम दुख़्त ने सर्वेश त्रिपाठी का अभिवादन किया था जो उस समय ईरान में चर्चा का विषय बना था ।
हम दोनों कवि की कविताओं का संक्षेप मे अनुवाद पेश कर रहे हैं ।
ऐ सिंहासन पर बैठे ज़ालिम तू अपनी शक्ति पर घमंड न करना
इसलिए कि ईरान के पास सुलैमानी जैसे हीरे मौजूद हैं
क्या तू इस भ्रम में है कि तेरा मुक़ाबला सिर्फ़ ईरान से है?
जान ले कि पूरा भारत तुझसे जंग करने और क़ुर्बानी देने के लिए तैयार है।
जब तक शहादत की संस्कृति बाक़ी है, यह क़ौम मरने वाली नहीं है,
एक सुलैमानी के लहू से सौ सुलेमानी पैदा होते हैं।
वहीँ सर्वेश का अभिनन्दन करते हुए शाबान करम दुख्त की कविता का कुछ अंश इस प्रकार रहा…
हालांकि यह कुछ अलग ज़माना है
लेकिन भारत आज भी दूसरा ईरान है
सर्वेश की शायरी ने दिखा दिया है कि
भारत में अब भी बेदिल जैसे इंसान हैं।
बता दें कि 3 जनवरी 2020 में इराक सरकार के आधिकारिक निमंत्रण पर बग़दाद गए ईरान के मेजर जनरल क़ासिम सुलैमानी और उनके साथियों को अमेरिका ने एक आतंकी हमले में मार डाला था जिस के बाद मीडिल ईस्ट में जंग का खतरा मंडलाने लगा था। ईरान ने क़ासिम सुलैमानी को सुपुर्दे ख़ाक करने से पहले इराक में अमेरिका के सबसे बड़े सैन्य एयरबेस पर बैलिस्टिक मिसाइल बरसा कर इस अड्डे को तहस नहस कर डाला था।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यह पहला अवसर था जब अमेरिका को इतने खतरनाक हमले का निशाना बनाया गया वरना द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से अमेरिका की ओर आधिकारिक रूप से एक भी गोली नहीं दागी गयी थी।