डॉलर के मुकाबले रुपये की गिरावट से एयर इंडिया पर बोझ
अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये की गिरावट का सिलसिला जारी है, जिसके चलते कई क्षेत्रों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। रुपये की इस गिरावट ने भारतीय विमान कंपनी एयर इंडिया के खर्चों और मुनाफे पर दबाव बढ़ा दिया है। कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि एयरलाइंस को इस नुकसान से कुछ हद तक राहत मिल सकती है क्योंकि वह अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के लिए ज्यादा किराया वसूल सकती है, जहां टिकटों की कीमत विदेशी मुद्राओं में होती है।
हाल के हफ्तों में भारतीय रुपया गिर रहा है और 10 जनवरी को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 86.04 की रिकॉर्ड निम्नतम स्तर पर पहुंच गया। कमजोर रुपया एयरलाइंस के परिचालन खर्चों को बढ़ाता है क्योंकि उनके ज्यादातर खर्च डॉलर में होते हैं। एयर इंडिया के चीफ कमर्शियल ऑफिसर (सीसीओ) निपुण अग्रवाल ने कहा कि रुपये की गिरावट उद्योग और एयर इंडिया के लिए निश्चित रूप से एक चुनौती है और इस स्थिति का सामना उत्पादन क्षमता को बेहतर बनाकर और अन्य उपायों के जरिए किया जाएगा।
कंपनी के अधिकांश खर्च डॉलर में
उन्होंने पत्रकारों से कहा, “रुपये की कीमत में गिरावट हमारे खर्चों पर दबाव डालती है क्योंकि हमारे अधिकतर खर्च डॉलर में होते हैं। रुपये की कीमत जितनी ज्यादा गिरेगी, हमारे खर्च और मुनाफे पर उतना ही अधिक दबाव पड़ेगा।” उल्लेखनीय है कि एयर इंडिया समूह रोजाना 1,168 उड़ानें संचालित करता है, जिनमें अंतरराष्ट्रीय गंतव्यों के लिए 313 सेवाएं शामिल हैं। इन विदेशी उड़ानों में से 244 छोटी दूरी की और 69 लंबी दूरी की उड़ानें हैं।
ग्राहकों पर पड़ सकता है असर
इस समूह में एयर इंडिया और कम लागत वाली एयरलाइन एयर इंडिया एक्सप्रेस शामिल हैं। पिछले साल एयर इंडिया ने विस्तारा के साथ विलय किया था और AIX कनेक्ट को एयर इंडिया एक्सप्रेस के साथ मर्ज कर दिया गया। अग्रवाल के अनुसार, यह अन्य एयरलाइनों की तुलना में बहुत अधिक अंतरराष्ट्रीय उड़ानें संचालित करती है। इसीलिए हम अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा में शुल्क ले सकते हैं और इस दबाव का कुछ हिस्सा अपने ग्राहकों को सौंप सकते हैं क्योंकि हमारा शुल्क डॉलर या अन्य उपलब्ध मुद्राओं में तय होता है।
अग्रवाल ने कहा कि हर चीज की कीमत विदेशी मुद्रा में नहीं होती। उन्होंने यह भी बताया कि अंतरराष्ट्रीय उड़ानों पर हमारा कुछ प्रभाव पड़ता है, लेकिन इसे कुछ हद तक कम किया जा सकता है। हालांकि, इसका हमारे मुनाफे पर प्रभाव पड़ता है और बाजार में किरायों पर दबाव बढ़ता है।