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बिलक़ीस बानो गैंगरेप के दोषियों की रिहाई से भाजपा की “महिला विरोधी नीति” का पर्दाफाश हो गया: प्रियंक गांधी

बिलक़ीस बानो गैंगरेप के दोषियों की रिहाई से भाजपा की “महिला विरोधी नीति” का पर्दाफाश हो गया: प्रियंक गांधी

बिलक़ीस बानो के साथ गैंगरेप और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में 11 दोषियों को छूट दी गई थी। दोषियों की रिहाई का देश में बड़े पैमाने पर विरोध हुआ था। आज सुप्रीम कोर्ट में 2 जजों की बेंच ने सोमवार को गुजरात सरकार के अगस्त 2022 के फैसले को रद्द कर दिया है। जब फैसला आया तो तमाम राजनीतिक दलों ने इसका स्वागत किया। विपक्ष ने भाजपा पर भी निशाना साधा।

प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा- अंततः न्याय की जीत हुई है। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात दंगों के दौरान गैंगरेप की शिकार बिलक़ीस बानो के आरोपियों की रिहाई रद्द कर दी है। इस आदेश से भारतीय जनता पार्टी की महिला विरोधी नीतियों पर पड़ा हुआ पर्दा हट गया है। इस आदेश के बाद जनता का न्याय व्यवस्था के प्रति विश्वास और मजबूत होगा। बहादुरी के साथ अपनी लड़ाई को जारी रखने के लिए बिलक़ीस बानो को बधाई।

उन्होंने यह दावा भी किया कि सर्वोच्च अदालत के इस निर्णय से जनता का न्याय व्यवस्था के प्रति विश्वास और मजबूत होगा। प्रियंका गांधी ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘‘अंततः न्याय की जीत हुई। उच्चतम न्यायालय ने गुजरात दंगों के दौरान सामूहिक दुष्कर्म की शिकार बिलकिस बानो के मामले के आरोपियों की रिहाई रद्द कर दी है।

क्या है बिलक़ीस गैंगरेप मामला
2002 में गोधरा कांड के बाद गुजरात में सांप्रदायिक हिंसा फैल गई थी और हजारों मुस्लिम परिवार सुरक्षित स्थानों की तलाश में अपना घर छोड़कर जा रहे थे। इसमें से ही एक बिलक़ीस बानो का परिवार भी था। लेकिन तभी बिलक़ीस बानो के परिवार पर भीड़ के द्वारा हमला कर दिया गया था। बिलक़ीस बानो के साथ 3 मार्च, 2002 को भीड़ द्वारा सामूहिक दुष्कर्म किया गया था। दुष्कर्म की यह घटना दाहोद जिले के लिमखेड़ा तालुका में हुई थी। उस समय बिलक़ीस बानो गर्भवती थीं।

उन्मादी भीड़ ने तलवारों, लाठी-डंडों से बानो के परिवार पर हमला बोल दिया था जिसमें उनके परिवार के 8 लोगों की मौत हो गई थी जबकि 6 लोगों का कुछ पता नहीं चला था। इस हमले में बिलक़ीस बानो किसी तरह बच गई थीं। हमले में बानो की 3 साल की बेटी सालेहा की भी मौत हो गई थी। बिलक़ीस बानो की बेटी को उनके सामने ही मार दिया गया।

बिलक़ीस की उम्र उस समय सिर्फ़ 21 साल थी। बिलक़ीस, क़ातिलों और दरिंदों से बचने के लिए परिवार के साथ यहां से वहां भागती रहीं। इस कारण बिलक़ीस के परिजनों को दो साल में 20 बार अपना घर बदलना पड़ा। धमकियों से परेशान होकर बिलकीस ने सुप्रीम कोर्ट से अपने मामले को गुजरात से बाहर किसी दूसरे राज्य में भेजने की गुहार लगाई।

सुप्रीम कोर्ट ने केस को अगस्त 2004 में मुंबई ट्रांसफ़र कर दिया। बिलक़ीस अपने हक़ के लिए तमाम अदालतों से लेकर मानवाधिकार आयोग तक के चक्कर लगाती रहीं। साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने बिलक़ीस बानो के लिए 50 लाख रुपए का मुआवजा देने का निर्देश गुजरात सरकार को दिया था।

बिलक़ीस बानो को एक आदिवासी महिला ने अपने कपड़े दिए थे और इसके बाद एक होमगार्ड की मदद से वह लिमखेड़ा पुलिस थाने में अपनी शिकायत दर्ज कराने पहुंच सकी थीं। इस मामले में सोमाभाई गोरी नाम के पुलिस विभाग के सिपाही को हमलावरों को बचाने के आरोप में 3 साल की कैद की सजा सुनाई गई थी।

इस लड़ाई में बिलकीस बानो को कई अच्छे लोग भी मिले जिन्होंने अहमदाबाद, बड़ौदा, मुंबई, लखनऊ, दिल्ली में बिलक़ीस के परिवार को रहने के लिए ठिकाना दिया। ये वे लोग थे, जिन्होंने बिलक़ीस के इंसाफ के लिए लड़ने के उसके हौसले को ज़िंदा रखा। बिलक़ीस बानो को इस लड़ाई में उनके शौहर याक़ूब ने भी उसका साथ दिया।

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