मुलायम सिंह को प्रधानमंत्री मोदी की रेवड़ी
स्वर्गीय मुलायम सिंह यादव को मिला पद्म विभूषण पुरस्कार, मिलते ही देश में बहस शुरू हो गई. बहस शुरू होना लाज़मी था क्योंकि यह पुरस्कार मोदी सरकार के पहले दौर में नहीं मिला बल्कि मोदी सरकार 2 के आखरी साल में दिया गया वह भी तब जब मुलायम सिंह का देहांत हो गया। सबकी ज़बान पर यही प्रश्न है कि अगर मुलायम सिंह यादव इस पुरस्कार के योग्य थे तो उनको यह पुरस्कार देने में इतना समय क्यों लगा? दूसरा प्रश्न यह है कि उनको यह पुरस्कार उनके देहांत के बाद क्यों दिया गया ? उनके जिवित रहते हुए क्यों नहीं दिया गया ?
सबसे पहले तो सभी हैरान थे कि मुलायम को यह सम्मान भाजपा सरकार ने दिया है, जिसे देश में सबसे ज्यादा परेशान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने किया है। क्या किसी और मुख्यमंत्री ने वह किया जो मुलायम ने राम मंदिर विरोध में भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ किया? क्या किसी प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री ने शंकराचार्य को गिरफ्तार करने का साहस किया है? अगर मुलायम सिंह की सेहत ने साथ दिया होता तो वे अकेले ऐसे नेता होते जो नरेंद्र मोदी को चुनौती दे सकते थे।
पूरे देश में उनके प्रशंसक मौजूद थे लेकिन वह इतने उदार थे कि उन्होंने संसद में भी खुलकर मोदी की तारीफ की लेकिन क्या इसलिए मुलायम को भाजपा ने सम्मानित किया है? शायद नहीं। अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर किए गए एहसानों पर बात की जाए तो ऐसे कम आज भी जीवित हैं, जिन्हें भारत रत्न दिया जाए तो भी कम होगा. तो मुलायम सिंह को यह सम्मान क्यों दिया गया? मुझे नहीं लगता कि यह एक सम्मान है। यह एक रेवड़ी है, जिसे मरणोपरांत और जीवन के दौरान भी वितरित किया जाता है। गरीबों में बांटे जाने वाले रेवड़ और ऐसे सम्मान के रेवड़ में ज्यादा अंतर नहीं है।
स्वर्गीय इंदिरा गांधी ने इस रेवड़ी को रेवड़ा बनाकर सबसे पहले अपना कर लिया। अब मुलायम सिंह को जो रेवड़ी दी गई है इस रेवड़ी की अब उन्हें बिल्कुल भी जरूरत नहीं थी। जिंदा होते तो कहते कि मिठाई छोड़ दी है। जिन लोगों को अब तक भारत रत्न मिला है, उनमें से दो-तीन लोगों को मैं व्यक्तिगत रूप से अच्छी तरह जानता हूं। वह लोग तो मुलायम सिंह के बराबर भी नहीं थे।
इसलिए समाजवादी पार्टी के कुछ नेताओं का बयान बेहतर है कि अगर मोदी जी को मुलायम सिंह जी को कुछ देना था तो वह भारत रत्न होना चाहिए था. इन समाजवादी लोगों को लग रहा है कि यह मुलायम जी को श्रद्धांजलि नहीं है, बल्कि यूपी के यादव वोटों को हथियाने की चाल है.
अगर अखिलेश यादव या उनकी पत्नी को यह सम्मान मिल जाता है तो बीजेपी की यह रेवड़ी रसगुल्ला बन जाएगी. अखिलेश के लिए बीजेपी ने यह बड़ी दुविधा खड़ी कर दी है. बीजेपी के कुछ नेताओं को यह भी लग रहा है कि अगर मुलायम सिंह को अपना बना लेते हैं तो अखिलेश को हाशिए पर धकेलना उनके बाएं हाथ का खेल होगा.
उनकी एक रणनीति यह भी हो सकती है कि अगले चुनाव में भाजपा और सपा एक हो जाएं। जहां तक अखिलेश की बात है तो उन्हें डॉ. लोहिया के समाजवादी सिद्धांतों की कोई खास जिद या जानकारी नहीं है। इसलिए समाजवादी पार्टी को बीजेपी से गठबंधन करने में ज्यादा दिक्कत नहीं होगी। यह सम्मान भी एक शानदार ट्रिक साबित हो सकता है।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए IscPress उत्तरदायी नहीं है।


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