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‘बुलडोजर एक्शन’ पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का राजनीतिक दलों ने स्वागत किया

‘बुलडोजर एक्शन’ पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का राजनीतिक दलों ने स्वागत किया

नई दिल्ली: भाजपा शासित राज्यों द्वारा की जा रही बुलडोजर कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट के सख्त फैसले का विभिन्न धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दलों ने स्वागत किया है। गौरतलब है कि बुलडोजर कार्रवाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका जमीयत उलेमा-ए-हिंद, सीपीएम नेता वृंदा करात, प्रसिद्ध वकील अधिवक्ता दुष्यंत दवे और अन्य लोगों द्वारा दाखिल की गई थी। कोर्ट ने इस पर सुनवाई करते हुए कड़ा फैसला सुनाया है।

कोर्ट के इस फैसले का स्वागत करते हुए उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने कहा कि केंद्र सरकार को देशभर में बुलडोजर कार्रवाई पर एक गाइडलाइन बनानी चाहिए। उन्होंने कहा कि बुलडोजर एक्शन के तहत की गई विध्वंस कार्रवाई को कानून के शासन का प्रतीक नहीं कहा जा सकता, लेकिन इसके प्रति रुझान बढ़ता जा रहा है, जो काफी चिंताजनक है। बीएसपी सुप्रीमो ने कहा कि अगर केंद्र सरकार ने बुलडोजर कार्रवाई पर गाइडलाइन जारी कर दी होती तो इस मामले में सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप नहीं करना पड़ता।

लोकतांत्रिक देश में बुलडोजर से न्याय नहीं किया जा सकता: अखिलेश
इस मामले में समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने बिल्कुल सही फैसला सुनाया है। हम यह बात पहले से कह रहे हैं कि किसी भी लोकतांत्रिक देश में जहां कानून का शासन हो, वहां बुलडोजर से न्याय नहीं किया जा सकता। यह तो न्याय पर बुलडोजर चलाने जैसा हो जाएगा। इसलिए बुलडोजर एक्शन के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया है, वह बिल्कुल सही है। भाजपा सरकारों को अब इस मनमानी से बाज आ जाना चाहिए, वरना कोर्ट उनके खिलाफ कार्रवाई के लिए पूरी तरह तैयार बैठी है।

बुलडोजर न्याय का तरीका नहीं, दबाव का तरीका है: कांग्रेस
इस मामले में कांग्रेस की प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने वीडियो जारी कर प्रतिक्रिया दी कि बुलडोजर कार्रवाई किसी भी लोकतांत्रिक देश में स्वीकार्य नहीं है, और वह भी अल्पसंख्यकों के खिलाफ तो बिल्कुल भी नहीं हो सकती, क्योंकि इसके जरिए बहुसंख्यक दबाव का संदेश दिया जाता है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने सिरे से खारिज कर दिया है।

सुप्रिया श्रीनेत ने आगे कहा कि कांग्रेस पार्टी हमेशा से कहती रही है कि बुलडोजर न्याय का तरीका नहीं हो सकता, बल्कि यह तो दबाव का तरीका है, जिससे मोदी सरकार और भाजपा की अन्य सरकारों को बचना चाहिए था। लेकिन वे इसे पूरे देश में बढ़ावा दे रहे थे, हालांकि अब सुप्रीम कोर्ट ने इसका संज्ञान ले लिया है और फैसला सुना दिया है। हम उम्मीद करते हैं कि जो गाइडलाइंस जारी होंगी, वे बेहद उचित होंगी।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने देशभर में 1 अक्टूबर तक बुलडोजर कार्रवाई पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने केंद्र सरकार की निंदा करते हुए कहा कि अगर दो सप्ताह तक बुलडोजर पर रोक लगी रही तो कोई आसमान नहीं गिर पड़ेगा। बेंच ने एक बार फिर स्पष्ट किया कि इसके आदेश अवैध निर्माण के बारे में नहीं हैं, लेकिन कहा कि अगर एक भी अवैध विध्वंस कार्रवाई हुई तो उसे संविधानिक नैतिकता के खिलाफ माना जाएगा।

केंद्र सरकार द्वारा देशव्यापी स्तर पर ऐसी रोक लगाने पर आपत्ति को खारिज करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि वह संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपने विशेषाधिकारों का उपयोग करते हुए ये आदेश जारी कर रही है। कोर्ट ने संकेत दिया कि वह गाइडलाइंस के बजाय अवैध बुलडोजर कार्रवाइयों के खिलाफ सीधे आदेश जारी कर सकती है।

सुप्रीम कोर्ट में जमीयत उलेमा-ए-हिंद के दोनों गुटों और अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति बी आर गोई और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की बेंच ने अपने स्पष्ट आदेश में कहा कि अगली तारीख तक इस अदालत की अनुमति के बिना कोई विध्वंस कार्रवाई नहीं होगी। हालांकि, यह आदेश सार्वजनिक सड़कों, फुटपाथों, रेलवे लाइनों या सार्वजनिक स्थानों पर अनधिकृत निर्माणों पर लागू नहीं होगा।

देशभर में विध्वंस कार्रवाइयों पर रोक की मांग करने वाले जमीयत उलेमा-ए-हिंद के सीनियर अधिवक्ता चंद्र उदय सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में पिछली सुनवाई के बावजूद विध्वंस कार्रवाई की बेंच का ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने पथराव का आरोप लगाकर 12 सितंबर को घर गिराए जाने के बारे में अदालत को सूचित किया।

हालांकि केंद्र सरकार ने इसका बचाव करते हुए इसे एक असंबंधित मामला बताया। लेकिन बेंच ने नाराजगी जताते हुए सवाल किया कि फिर इस मामले में अचानक विध्वंस की जरूरत क्यों पड़ी? इसके बाद बेंच ने अपने कड़े अवलोकन में कहा कि अदालत अवैध निर्माणों के विध्वंस में शक्ति और अधिकारों के दुरुपयोग के खिलाफ आदेश जारी करना चाहती है।

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