हाई कोर्ट में ख़तने पर रोक लगाने के लिए याचिका दाखिल, ‘क्रूर और बर्बर’ कहकर ख़तना पर प्रतिबंध लगाने का आह्वान
धर्मांतरण के खिलाफ काम करने वाले कार्यकर्ताओं के एक समूह ने केरल उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है और न्यायालय से किशोर मुस्लिम बच्चों के खतने की परंपरा में तुरंत हस्तक्षेप करने को कहा है। मुस्लिम समुदाय में लड़कों का एक से पांच साल की उम्र तक और कभी कभी 8 या 9 साल की उम्र में भी ख़तना किया जाता है।
आवेदन में इस कार्रवाई को बच्चों के खिलाफ मानवाधिकारों के उल्लंघन के रूप में घोषित किया गया है। और साथ ही साथ यह भी कहा है कि स्वास्थ्य के लिए हानिकारक पारंपरिक प्रथाओं को खत्म करने के लिए सभी एकजुट होंगे। सभी पक्ष यह सुनिश्चित करेंगे कि एक बच्चे को उसकी निजता, पारिवारिक घर या मनमाने या गैरकानूनी हस्तक्षेप के अधीन नहीं किया जाएगा, न ही उसकी प्रतिष्ठा पर गैरकानूनी हमला किया जाएगा।
याचिका में कहा गया है कि बच्चों का ख़तना करने के लिए मजबूर किया जाता है और यह उनका अधिकार नहीं है और यह अंतरराष्ट्रीय समझौतों का स्पष्ट उल्लंघन है। याचिका में इस प्रथा को क्रूर, अमानवीय और बर्बर बताया गया है। और यह भी कहा गया है कि इसके कारण कुछ शिशुओं की मौत हो गई है। याचिका में अदालत से ख़तना को अवैध घोषित करने और इसे गैर-जमानती अपराध बनाने और ख़तना के बाद मृत्यु हो जाने पर विशेष कानून बनाने का अनुरोध किया गया है।
याचिका में कई कारण भी बताए गए हैं कि क्यों इस प्रक्रिया पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। कहा जा रहा है कि ख़तना प्रथा बच्चों के बचपन का आघात है और जैविक रूप से यह बच्चे के भविष्य के विकास को भी प्रभावित करता है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि अनुपचारित खतना बच्चे के शारीरिक, भावनात्मक और संज्ञानात्मक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।