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आरएसएस से संपर्क नहीं करने की वजह से पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा: संघ

आरएसएस से संपर्क नहीं करने की वजह से पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा: संघ

इंदौर। लोकसभा चुनाव के परिणाम में भाजपा के प्रदर्शन को देख हर कोई हैरान था। हर एग्जिट पोल भाजपा को 300 सीटों के पार दिखा रहा था, लेकिन नतीजों में वह 240 पर ही सिमट गई। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने भाजपा के लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के कारणों का जिक्र किया है।

बीजेपी भले ही खुले तौर पर न माने कि लोकसभा चुनाव में उसे बहुत बड़ा झटका लगा है, लेकिन उसका मातृ संगठन आरएसएस तो कम से कम ऐसा ही मानता है। आरएसएस को ऐसा लगता है कि अति आत्मविश्वासी भाजपा कार्यकर्ताओं और नेताओं की वजह से पार्टी का निराशाजनक प्रदर्शन रहा है।

आरएसएस के मुखपत्र ‘ऑर्गनाइजर’ में एक लेख छपा है, जिसमें कहा गया है कि भाजपा कार्यकर्ता चुनाव के दौरान अति आत्मविश्वास में दिख रहे थे। यही वजह है कि भाजपा का परिणाम बहुत निराशाजनक था। कार्यकर्ता जनता से कट गए थे। वह उनकी ना सुनकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के भरोसे ही बैठे थे।

बीजेपी के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष जेपी नड्डा ने कहा था कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय और मौजूदा समय में काफी कुछ बदल चुका है। उन्‍होंने इंडियन एक्सप्रेस से इंटरव्यू में कहा था कि ‘पहले हम इतनी बड़ी पार्टी नहीं थे और अक्षम थे, हमें आरएसएस की जरूरत पड़ती थी, लेकिन आज हम काफी आगे बढ़ चुके हैं और अकेले दम पर आगे बढ़ने में सक्षम हैं।’

आरएसएस ने कहा कि भाजपा ने जमीन पर ‘स्वयंसेवकोंं’ का बिल्कुल सहयोग नहीं किया था। भाजपा ने काम करने वाले कार्यकर्ताओं का ध्यान नहीं रखा। वह उन कार्यकर्ताओं के भरोसे बैठे रहे, जो ‘सेल्फी’ के जरिए प्रचार कर रहे थे। आरएसएस मेंबर रतन शारदा ने लिखा कि भाजपा को निराशाजनक प्रदर्शन से सबक सीखने की जरूरत है।

उन्होंने आगे लिखा कि महाराष्ट्र में भाजपा कार्यकर्ताओं में बहुत ज्यादा आक्रोश था। वह राज्य में भाजपा की राजनीति को पसंद नहीं कर रहे थे। एनसीपी (अजीत गुट) के भाजपा के साथ गठबंधन को पार्टी कार्यकर्ताओं ने नापसंद किया। भाजपा के इन निर्णयों की वजह से पार्टी की साख राज्य में कम होती चली गई।

लेख में यह भी कहा गया है कि मोदी जादू की भी अपनी सीमाएं हैं। उन्होंने कहा, ‘यह विचार कि मोदीजी सभी 543 सीटों पर लड़ रहे हैं, इसका सीमित प्रभाव का है। यह विचार तब आत्मघाती साबित हुआ जब उम्मीदवारों को बदल दिया गया, स्थानीय नेताओं की कीमत पर थोपा गया और दलबदलुओं को अधिक महत्व दिया गया। देर से आने वालों को समायोजित करने के लिए अच्छा प्रदर्शन करने वाले सांसदों की बलि देना दुखद है।’

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