पप्पू पास हो गया!
सत्ता परिवर्तन सभी पार्टियों के लिए एक सबक़ होता है, जीतने वाले के लिए भी और हारने वाले के लिए किसी भी दल या उसके नेता को कभी भी यह ग़लत फ़हमी नहीं पालनी चाहिए कि वह या उसकी पार्टी हमेशा सत्ता में रहेगी,क्योंकि जब समय करवट लेता है तो बड़े बड़े राजाओं के सिंहासन हिलने लगते हैं।
इसीलिए सभी दलों को चाहे हारने वाले हों या जीतने वाले अपनी हार और जीत दोनों की समीक्षा करनी चाहिए। हारने वाले दल को अपनी ग़लतियों से शिक्षा लेते हुए निराश होने की जगह अमर्यादित, धार्मिक, जातीय भेद भाव की जगह जनता के मुद्दे जैसे महंगाई, बेरोज़गारी पर बात करनी चाहिए।
जो पार्टी जीतकर सत्ता में आती है उसे पिछली सरकार से सीखते हुए बिना किसी भेदभाव के जनता के हित में कार्य करना चाहिए क्योंकि नफ़रत से चुनाव जीते जा सकते हैं लेकिन देश नहीं चलाया जा सकता। कर्नाटक चुनाव को धार्मिक रंग देने की कोशिश की गई.जय बजरंबली से लेकर नमाज़ तक को मुद्दा बनाने की कोशिश की गई लेकिन कर्नाटक की जनता ने इस बार कुछ और ही सोच रखा था और उसने इस तरह के मुद्दे को पैर पसारने की जगह नहीं दी।
कर्नाटक चुनाव देश में होने वाले भविष्य के चुनाव के लिए टर्निंग पॉइंट साबित हो सकता है, जिसने दूसरे राज्यों की जनता को यह शिक्षा दी है महंगाई, शिक्षा और बेरोज़गारी से बड़ा कोई मुद्दा नहीं हो सकता। कर्नाटक चुनाव संपन्न हो गए और इसमें कांग्रेस पार्टी प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाने जा रही है.पिछले दस सालों में राजस्थान, छत्तीसगढ़ और हिमाचल प्रदेश के बाद कर्नाटक चौथा ऐसा राज्य है जहां कांग्रेस बहुमत के साथ सरकार बनाने जा रही है।
वैसे तो कर्नाटक चुनाव में जीत का श्रेय तो कई लोगों को दिया जा सकता है,लेकिन अगर इस श्रेय का सबसे ज़्यादा कोई हक़दार है तो वह हैं राहुल गाँधी और प्रियंका गांधी। कर्नाटक चुनाव की जीत राहुल गाँधी की “भारत जोड़ो यात्रा ” की जनता द्वारा सफलता की मुहर है। कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश चुनाव की सफलता, निराश कांग्रेस और कांग्रेसियों के लिए ऐसा टॉनिक है जिसका असर छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, और राजस्थान चुनाव तक बाक़ी रहेगा।
इसमें कोई शक नहीं कि भारत जोड़ो यात्रा से एक नए राहुल गाँधी का उदय हुआ, जिसने कड़कड़ाते हुए जाड़े में तीन महीने तक पैदल जनता के बीच जाकर उनकी समस्याओं को सुना और अकेले अपने बल पर दोबारा कांग्रेस को खड़ा कर दिया। इस चुनाव में कांग्रेस की सबसे अच्छी बात यह रही कि उसने उलटी सीधी बातें करने की जगह जनता के मुद्दे, महंगाई, बेरोज़गारी, स्वास्थ्य और शिक्षा पर चुनाव लड़ा. इस बार कांग्रेस ने इन सभी मुद्दों को बहुत ज़ोर शोर के साथ उठाया।
कांग्रेस ने इस बार भाजपा को उसी की शैली में जवाब दिया, विशेष रूप से राहुल गाँधी और प्रियंका काफी आक्रामक रहे, और पहली बार बीजेपी बचाव की मुद्रा में नज़र आई। इस चुनाव में राहुल गाँधी की मेहनत और सक्रीयता को देख कर कहा जा सकता है कि “पप्पू पास हो गया।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए IscPress उत्तरदायी नहीं है।