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किसी को भी नाम उजागर करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

किसी को भी नाम उजागर करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली: कांवड़ यात्रा के दौरान दुकानों के सामने नेमप्लेट लगाने के फरमान पर रोक जारी रहेगी। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि नेम प्लेट विवाद में उसका अंतरिम आदेश जारी रहेगा। साथ ही कोर्ट ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार को एक हफ्ते में जवाब दाखिल करने के लिए कहा है।

मामले में अगली सुनवाई अब 5 अगस्त को होगी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि हमारा आदेश साफ है। अगर कोई अपनी मर्जी से दुकान के बाहर अपना नाम लिखना चाहता है तो हमने उसे रोका नहीं है। हमारा आदेश था कि नाम लिखने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।

जस्टिस हृषिकेश रॉय और एसवीएन भट्टी की पीठ एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ़ सिविल राइट्स, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा, प्रोफेसर अपूर्वानंद और स्तंभकार आकार पटेल द्वारा उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकारों के निर्देशों के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, जब मामले की सुनवाई हुई, तो मोइत्रा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार ने कल रात 10.30 बजे जवाबी हलफनामा दाखिल किया है। उन्होंने कहा कि इसीलिए अब जवाब दाखिल करने के लिए समय की आवश्यकता है। यह कहते हुए कि हलफनामा रिकॉर्ड पर नहीं आया है, पीठ ने मामले को स्थगित करने पर सहमति जताई।

उत्तर प्रदेश राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि केंद्रीय कानून खाद्य एवं सुरक्षा मानक अधिनियम, 2006 के अनुसार ढाबों सहित हर खाद्य विक्रेता को मालिकों के नाम प्रदर्शित करने होंगे। इसलिए, मालिकों के नाम प्रदर्शित करने के निर्देश पर रोक लगाने वाला न्यायालय द्वारा पारित अंतरिम आदेश केंद्रीय कानून के विपरीत है।

तीन ढाबों का उदाहरण दिए
उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने जवाब में इन तीन ढाबों का उदाहरण दिए हैं। इन तीनों का नाम शाकाहारी ढाबे, हिंदू नाम वाले हैं लेकिन इनके ओनर मुस्लिम हैं। याचिकाकर्ता के वकील अभिषेक मनु सिंहवी ने कहा कि मुझे यूपी का जवाब आज सुबह मिला है। यूपी की तरफ से वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि यूपी ने अपना जवाब दाखिल कर दिया है। मध्य प्रदेश ने कहा कि उनके प्रदेश मे ऐसा नहीं हुआ सिर्फ उज्जैन म्युनिसिपल ने जारी किया था लेकिन कोई दबाव नहीं डाला गया है। सिंघवी ने कहा कि यूपी सरकार ने अपने जवाब में खुद स्वीकार किया है कि भेदभाव हो रहा है, भले ही कम समय के लिए ही।

ऐसा कानून है तो पूरे देश में इसे लागू होना चाहिए-SC
यूपी सरकार के वकील में कहा हमने जो किया उसके लिए केंद्रीय कानून है तो सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर ऐसा कानून है तो पूरे देश में इसे लागू होना चाहिए, इस साल ही अचानक से ऐसा क्यों किया गया? वो अचानक से एक खास इलाके में हो क्यों? इस पर उत्तराखंड के वकील ने कहा कि यह कहना गलत है कि मालिक का नाम प्रदर्शित करने के लिए कोई कानून नहीं है। यूपी सरकार ने इस बात पर आपत्ति जताई कि सुप्रीम कोर्ट ने बिना हमारा पक्ष सुने आदेश दे दिया।

उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा कि हमें शिव भक्त कांवड़ियों के भोजन की पसंद का भी सम्मान करना चाहिए। उत्तर प्रदेश सरकार का कहना है कि प्रेस विज्ञप्ति शांतिपूर्ण कांवड यात्रा के संचालन के लिए थी। प्रेस विज्ञप्ति पूरी तरह से कांवड यात्रा के शांतिपूर्ण समापन को सुनिश्चित करने के हित में जारी की गई थी, जिसमें सालाना 4.07 करोड़ से अधिक कांवरिया भाग लेते हैं।

उत्तर प्रदेश सरकार का कहना है कि वह किसी भी धर्म के लोगों की धार्मिक भावनाओं की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध है। उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा कि हमारे संविधान में निहित धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध होने के नाते, प्रत्येक व्यक्ति की धार्मिक भावनाओं की रक्षा करता है, चाहे उसका धर्म कुछ भी हो। राज्य यह सुनिश्चित करने के लिए हमेशा कदम उठाता है कि सभी धर्मों के त्योहार शांतिपूर्ण ढंग से मनाए जाएं।

सिंघवी ने कहा कि चूँकि पिछले 60 वर्षों की कांवड़ तीर्थयात्राओं के दौरान मालिकों के नाम प्रदर्शित करने का कोई आदेश नहीं था, इसलिए इस वर्ष ऐसे निर्देशों के लागू किए बिना यात्रा की अनुमति देने में कोई बुराई नहीं है। उन्होंने कहा कि यूपी सरकार ने अपने हलफनामे में स्वीकार किया है कि यह निर्देश भेदभाव पैदा कर रहा है।

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