नक्सलवाद अब इतिहास बनने जा रहा है: राजनाथ सिंह
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने मंगलवार को दिल्ली स्थित राष्ट्रीय पुलिस स्मारक में आयोजित पुलिस स्मृति दिवस कार्यक्रम में कहा कि नक्सलवाद, जो लंबे समय से भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए एक बड़ी चुनौती रहा है, अब समाप्ति की ओर है। उन्होंने बताया कि जो इलाके कभी नक्सली आतंक से कांपते थे, वहां आज सड़कों, अस्पतालों, स्कूलों और कॉलेजों का निर्माण हो चुका है। पहले जो क्षेत्र ‘रेड कॉरिडोर’ के नाम से जाने जाते थे, वे अब ‘ग्रोथ कॉरिडोर’ बन रहे हैं।
राजनाथ सिंह ने कहा कि इस परिवर्तन में पुलिस, सीआरपीएफ, बीएसएफ और अन्य अर्द्धसैनिक बलों का योगदान असाधारण रहा है। सुरक्षा बलों की निरंतर मेहनत और बलिदान के कारण आज नक्सलवाद का दायरा बहुत सीमित रह गया है। उन्होंने विश्वास जताया कि अगले वर्ष तक यह समस्या पूरी तरह समाप्त हो जाएगी। “वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित जिलों की संख्या अब बहुत कम है, और उम्मीद है कि मार्च 2026 तक यह पूरी तरह समाप्त हो जाएगी,” उन्होंने कहा।
रक्षामंत्री ने स्वीकार किया कि पुलिस बल के योगदान को लंबे समय तक वह मान्यता नहीं मिली जिसकी वे हकदार थे। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 2018 में राष्ट्रीय पुलिस स्मारक की स्थापना ने उस कमी को पूरा किया है। अब पुलिस को आधुनिक हथियारों, प्रशिक्षण और सुविधाओं से सशक्त किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि आज पुलिस को केवल अपराध से नहीं, बल्कि सामाजिक धारणा (perception) से भी लड़ना पड़ता है। “यह अच्छी बात है कि पुलिस अब केवल अपने आधिकारिक कर्तव्यों तक सीमित नहीं है, बल्कि सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारियां भी निभा रही है। लोगों में यह विश्वास बढ़ा है कि अगर कुछ गलत होता है तो पुलिस उनके साथ खड़ी होगी,” राजनाथ सिंह ने कहा।
उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि सेना और पुलिस के मंच भले अलग हों, लेकिन उनका लक्ष्य एक ही है—राष्ट्रीय सुरक्षा। भारत जब ‘अमृत काल’ में प्रवेश कर रहा है और 2047 तक ‘विकसित भारत’ बनने की दिशा में बढ़ रहा है, तब आंतरिक और बाहरी सुरक्षा के बीच संतुलन बनाए रखना पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।
कार्यक्रम में खुफिया ब्यूरो (IB) के निदेशक तपन डेका ने बताया कि प्रधानमंत्री के सुझाव पर 22 से 30 अक्टूबर तक राष्ट्रीय पुलिस स्मारक में विभिन्न केंद्रीय बलों की ओर से कई कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। इनमें शहीद पुलिसकर्मियों के परिवार भी शामिल होंगे। उन्होंने बताया कि पिछले एक साल में 191 पुलिसकर्मियों ने ड्यूटी के दौरान अपनी जान दी है, जबकि आज़ादी के बाद से अब तक कुल 36,684 पुलिसकर्मी देश की एकता, अखंडता और नागरिकों की सुरक्षा के लिए सर्वोच्च बलिदान दे चुके हैं।

