नकबा दिवस, फ़िलिस्तीनी भूमि पर इज़रायल की अवैध स्थापना का खूनी दिन था: ईरान
ईरान के विदेश मंत्रालय ने नकबा दिवस (14 मई, 1948 को फ़िलिस्तीन पर इज़रायली अवैध कब्ज़ा) के अवसर पर एक बयान जारी कर ग़ाज़ा पर जारी इज़रायली आक्रमण की निंदा की और संयुक्त राष्ट्र में फ़िलिस्तीन की पूर्ण सदस्यता के लिए पूर्ण समर्थन की घोषणा की।
इस्लामी गणतंत्र ईरान के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि 14 मई, 1948 फिलिस्तीन के क़ब्ज़े के दुखद दौर की शुरुआत थी और उत्पीड़ित फिलिस्तीनी लोगों, विशेषकर उनके अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन था। यह दिन पुराने ब्रिटिश उपनिवेशवादियों की नापाक साजिश द्वारा इस्लामी दुनिया के केंद्र में एक नस्लवादी और निरंकुश यहूदी शासन की स्थापना और फिलिस्तीनियों के नरसंहार और अपमान के खूनी युग की शुरुआत की सालगिरह का प्रतीक है।
फ़िलिस्तीन की भूमि पर यहूदी राज्य की अवैध स्थापना उस समय की औपनिवेशिक शक्तियों, विशेषकर यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका के समर्थन से की गई थी, जो पश्चिमी देशों की बर्बरता का स्पष्ट प्रमाण है।
ईरानी विदेश मंत्रालय ने इज़रायली सरकार को संगठित आतंकवाद का स्पष्ट संकेत बताया और कहा कि ग़ाज़ा के अस्पतालों में सामूहिक कब्रों की खोज, मानवता के खिलाफ क्रूर शासन के अपराधों की एक भयानक तस्वीर पेश करती है। ईरानी विदेश मंत्रालय ने गाजा में चल रहे युद्ध अपराधों और नरसंहार को संयुक्त राष्ट्र के बुनियादी मूल्यों और सभी मान्यता प्राप्त अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के खिलाफ बताते हुए इज़रायली अपराधियों के खिलाफ दंडात्मक उपायों का आह्वान किया।
बयान में कहा गया है कि इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान, पिछले सात महीनों में अमेरिका समर्थित नेतन्याहू शासन द्वारा 35,000 से अधिक निर्दोष लोगों के नरसंहार और ग़ाज़ा पर भयानक अत्याचारों की निंदा करता है। ग़ाज़ा पर युद्ध रोकने की प्रक्रिया में बाधा डालने का अमेरिका का कदम और हाल ही में संयुक्त राष्ट्र में फिलिस्तीनी राज्य की मान्यता का विरोध अस्वीकार्य, गैरजिम्मेदाराना और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के अनुरोध के विपरीत है।
ईरानी विदेश मंत्रालय ने फ़िलिस्तीनी मुद्दे और नाजायज़ ज़ायोनी शासन के संबंध में इस्लामी गणतंत्र ईरान की दृढ़ता पर ज़ोर देते हुए एक बार फिर फ़िलिस्तीनी राष्ट्र के साथ अपनी एकजुटता की घोषणा की और ज़ोर दिया कि फ़िलिस्तीनी मुद्दा इस्लामिक दुनिया का पहला और प्राथमिकता वाला मुद्दा है। साथ ही, इस्लामी गणतंत्र ईरान ने इसे ऐतिहासिक अन्याय से निपटने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम मानते हुए संयुक्त राष्ट्र में फिलिस्तीन की पूर्ण सदस्यता के लिए अपना समर्थन घोषित किया।