बजरंग दल के कार्यकर्ता की हत्या, एक घटना या सोची समझी साजिश ?

बजरंग दल के कार्यकर्ता की हत्या, एक घटना या सोची समझी साजिश ?

कर्नाटक के शिवमोगा से संबंध रखने वाले बजरंग दल के कार्यकर्ता हर्ष की मौत के साथ ही राज्य की राजनीति में एक बार फिर उबाल आ गया है।

हर्ष की हत्या के बाद राज्य की सियासत में आए उबाल से पहले यह समझना जरूरी है कि हर्ष की मौत पर यह राजनीति बाद में शुरू हुई या उसकी जिंदगी में ही राजनीति में उबाल लाने का कार्ड उसके नाम निकल चुका था।

हर्ष की जिंदगी से जुड़ी घटनाओं पर गहन विचार करें तो प्रतीत होगा कि हर्ष की मौत किसी गहरी राजनीतिक साजिश का नतीजा तो नहीं है ?हर्ष पर चार अपराधिक मामले दर्ज थे। उसकी मौत से पहले तक उसके परिवार वालों को भी आभास नहीं था कि वह इतना मशहूर हो जाएगा। उसकी मौत ने रातों-रात सारे शहर में आग लगा दी।

23 वर्षीय हर्ष की मौत वास्तव में बड़ी मिस्ट्री से भरी हुई है। एक ही दिन में बिना किसी भागदौड़ के उसके हत्यारों ने आत्मसमर्पण कर दिया। हर्ष की मौत से जुड़ी मिस्ट्री को समझने के लिए हमें कड़ी से कड़ी मिलानी होगी।

22 फरवरी इतवार की रात 8:30 बजे हर्ष अपने घर से एग राइस खाने के लिए निकलता है। हर्ष की मुलाक़ात अपने दोस्तों से होती है। कुछ देर बातचीत के बाद बराबर से किसी हंगामे की आवाज सुनकर हर्ष के साथी घटना का पता लगाने के लिए उसे छोड़ कर चले जाते हैं। लेकिन बजरंग दल का सक्रिय कार्यकर्ता कहलाने वाला हर्ष उनके साथ नहीं जाता। क्या वास्तव में हर्ष को इतनी भूख लगी थी कि वह अपने साथियों के साथ ना जाकर खाने के लिए रुका रहता है ? बजरंग दल का यह सक्रिय कार्यकर्ता अकेला ही क्यों रुक गया ?

खैर , हर्ष के साथी जैसे ही हर्ष को छोड़कर जाते हैं तो उसे अकेला पाकर कार में सवार अज्ञात हमलावर उस पर हमला कर देते हैं। तेज धारदार हथियार और छुरी से लैस हमलावर जब हर्ष को निशाने पर ले रहे होते हैं तो वह बचने के लिए मदद की गुहार लगाता है लेकिन उसकी मदद के लिए कोई आगे नहीं आता। सवाल यह भी उठता है क्या हर्ष पर हुए हमले की खबर उसके साथियों तक नहीं पहुंची ? कुछ देर पहले तक उसके साथ मौजूद उसके साथियों को क्या हर्ष की आवाज नहीं पहुंची ? यह शहर रात 9:00 बजे तक सन्नाटे में भी नहीं डूबता। फिर किसी ने उसे बचाने की कोशिश क्यों नहीं की ?

यह भी बताया जा रहा है कि जख्मी होने के बाद जमीन पर पड़ा हर्ष किसी से कुछ मांग रहा था। क्या हर्ष किसी अजनबी से सवाल कर रहा था या कोई जान पहचान वाला उसके पास मौजूद था ? सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में एक आवाज भी सुनाई दे रही है कि हर्ष का कोई जानकार एंबुलेंस की बात कर रहा है। लेकिन सवाल फिर यही होता है कि ऐसी स्थिति में क्या एंबुलेंस का इंतजार करना जरूरी था या घायल हर्ष को किसी अन्य माध्यम से अस्पताल पहुंचाना आवश्यक था ? क्या घटनास्थल पर मौजूद उसके साथी किसी के ऑर्डर की प्रतीक्षा में थे ?

बाहर हाल जो भी हुआ, लेकिन यह बात समझ में नहीं आती कि जहां हर्ष की मदद के लिए कोई तैयार नहीं था वहां देखते ही देखते ढाई सौ -300 लोगों की उन्मादी और खूंखार भीड़ कैसे जमा हो गई? हथियारों से लैस नकाबपोश उन्मादी गिरोह, मुस्लिम इलाकों में घुस पड़ा और तोड़फोड़, पत्थरबाजी और आगजनी शुरू कर दी। क्या इस गिरोह को पहले से ही तैयार किया गया था ?

घटनास्थल के निकट की है पुलिस स्टेशन मौजूद है, लेकिन पुलिस भी उस वक्त पहुंची जब उन्मादी गुट अपना काम करके इलाके से भाग चुका था। इतना सब कुछ हो गया लेकिन शहर में फिर भी कर्फ्यू नहीं लगाया जाता। जबकि शिवमोगा बेहद संवेदनशील क्षेत्र है। यहां चिंगारी पलक झपकते ही आग का रूप धार लेती है। फिर भी संवेदनशील हालात के बावजूद हर्ष के शव के साथ रैली निकालने की अनुमति दे दी जाती है और देखते ही देखते बीजेपी और आरएसएस के छोटे बड़े नेता जमा हो जाते हैं आग में घी का काम करता है भाजपा एमएलए ईश्वरप्पा का बयान, जिसमें बगैर किसी जांच के हर्ष के कातिलों का संबंध मुसलमानों से जोड़ते हुए कहता है कि हर्ष के हत्यारे मुसलमान हैं।

बात करें हर्ष के परिवार की तो उनके बयान और अधिक चौंकाने वाले हैं। हर्ष की मां का कहना है कि उसने बजरंग दल छोड़ दिया था। हर्ष के निकट संबंधी का एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें वह कह रहे हैं कि 2 साल पहले हिंदुत्ववादी गुटों ने हर्ष के कत्ल पर 10 लाख का इनाम घोषित किया था। फिर हर्ष की बहन रोते हुए कहती है कि हिंदू, हिंदूवादी और हिंदुत्व के नाम पर आज मेरे भाई का यह हाल हुआ है।

एक तरफ हर्ष के घर वालों का बयान, दूसरी तरफ भाजपा एमएलए ईश्वरप्पा का कहना कि हर्ष को मुसलमानों ने मारा है। फिर एक अन्य भेजा नेता का बयान जिसमें पुलिस वालों को नामर्द कहते हुए हवस वालों की लाशें गिराने की बात करते हुए पुलिस वालों पर आरोप लगा रहा है कि हमने पहले ही संकेत कर दिया था लेकिन पुलिस फिर भी असफल रही।

सवाल यह है कि बगैर किसी जांच और पड़ताल के ईश्वरप्पा और चिन्ना को कैसे पता चला कि यह मुसलमानों ने किया है ? पुलिस को उन्होंने किस बात का संकेत किया था ?

यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि कांग्रेस के दिग्गज नेता डीके शिवकुमार और डीके प्रसाद दोनों ने हर्ष की मौत के लिए ईश्वरप्पा को जिम्मेदार ठहराया है यह कोई मामूली बात नहीं है। डीके प्रसाद ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि हर्ष की मौत का जिम्मेदार ईश्वरप्पा है। कहा जाए तो गलत नहीं होगा कि यहां दाल में काला नहीं बल्कि पूरी दाल काली है।

इस घटना की सीबीआई जांच होना जरूरी है। हर्ष की मौत की आड़ में शहर में नफरत और हिंसा की आग भड़काने के साथ-साथ पुलिस को बदनाम करने के मामले में भी उन्मादी और फसादी नेताओं के खिलाफ कड़ी कार्यवाही होनी चाहिए। हालात ऐसे ही रहे तो बस्ती-बस्ती किसी बहन का भाई ,किसी मां बाप का बेटा हर्ष बनता रहेगा। आज हर्ष है कल किसी और घर का चिराग होगा। जबकि उन्मादी नेताओं की औलाद गरीब बच्चों को चिताओं में झोंक कर अपना भविष्य चमकाती रहेंगी।

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