CAA -NRC जैसे क़ानूनों पर गंभीरता से विचार करे मोदी सरकार
किसानों के नए कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ क़रीब एक साल आंदोलन के बाद आखिरकार मोदी सरकार को किसानों के सामने झुकना पड़ा जिसके बाद से CAA और NRC को भी रद्द कराने के लिए मांग उठने लगी हैं आल इंडिया माइनॉरिटीज फ्रंट ने केंद्र में मौजूद मोदी सरकार से CAA और NRC क़ानूनों को भी रद्द करने की मांग की है फ्रंट का कहना है कि अगर सरकार ने CAA और NRC जैसे क़ानूनों पर गंभीरता से विचार नहीं किया तो फिर शाहीन बाग जैसे आंदोलन को खड़ा होने का मौका मिल जाएगा।
आल इंडिया माइनॉरिटीज फ्रंट के अध्यक्ष एस एम आसिफ ने ये कहा कि जिस तरह से पीएम मोदी ने पिछले साल लाए गए नए कृषि क़ानूनों को वापस लेने की घोषणा की है, उसी तरह देश के अल्पसंख्यक खासकर मुस्लिम तबके के हितों को ध्यान में रखते हुए दो साल पहल पारित किए गए क़ानून CAA और NRC को भी वापस लेने की घोषणा करनी चाहिए।
एस एम आसिफ ने सरकार को चेताते हुए कहा कि अगर केंद्र सरकार ने इस पर समय रहते विचार नहीं किया तो एक बार फिर देश में शाहीन बाग़ जैसा आंदोलन शुरू हो सकता है उन्होंने ये भी कहा कि जिस तरह से पिछली बार केंद्र सरकार उन आंदोलन को रोक पाने में एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ा था। अगर सरकार यह कानून वापस नहीं लेती तो दिल्ली के साथ ही देश के अन्य राज्यों में एक साथ कई शाहीन बाग खड़े हो जायेंगे।
ग़ौर तलब है कि शाहीन बाग़ के धरना प्रदर्शन और किसानों के आंदोलन के रिश्ते के बारे में बोलते हुए उन्होंने कहा कि CAA और NRC कानून के खिलाफ शाहीन बाग में हुए धरने, प्रदर्शन का किसान आन्दोलन के साथ गहरा रिश्ता है। उनका इस बाबत यह भी कहना है कि शाहीन बाग के आन्दोलन से प्रेरित होकर ही कृषि कानूनों के खिलाफ आन्दोलन करने की प्रेरणा किसानों को मिली थी। यही बात अभी कुछ दिन पहले ही जमीयत उलेमा ए हिन्द के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने भी कही थी।
उन्होंने कहा कि जब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसानों के सम्मान का ख्याल रखते हुए विवादित कृषि कानून वापस ले सकते हैं और ऐसा करके उन्होंने वास्तव में किसान हितों का संरक्षण ही किया है। उनसे अल्पसंख्यकों को भी ऐसे ही संरक्षण की उम्मीद है।
ग़ौर तलब है कि जब किसानों ने एक साल पहले नए कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ आंदोलन शुरू किया था तो किसानों और सरकार के बीच बातचीत के कई दौर भी चले थे लेकिन CAA-NRC को लेकर मुस्लिम समाज और सरकार की कोई बातचीत नहीं हुई। मुस्लिम समाज न तो इस मामले पर सरकार के पास गया और न ही सरकार समाज के आंदोलनकारियों से आकर मिली। इन परिस्थितियों में सरकार को सीएए और एनआरसी से जुड़े कानून वापस ले लेने चाहिए।


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