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नीतीश-नायडू की डिमांड से, टेंशन में मोदी सरकार

नीतीश-नायडू की डिमांड से, टेंशन में मोदी सरकार

मोदी 3.0 का पहला बजट पेश होने जा रहा है, और इस पर सबकी निगाहें टिकी हैं। लेकिन इसके पहले ही बीजेपी के दो बड़े सहयोगी, नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू ने पीएम मोदी और केंद्र सरकार के सामने भारी भरकम डिमांड रख दी है।

जानकारी के अनुसार, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने बजट में विशेष सहायता पैकेज की मांग की है। इसके साथ ही, उन्होंने राज्य द्वारा लिए जाने वाले कर्ज की सीमा को भी बढ़ाने का अनुरोध किया है ताकि उनके राज्य अधिक कर्ज ले सकें और विकास की गति को तेज कर सकें।

नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के 12 सांसद और नायडू की पार्टी टीडीपी के 16 सांसद हैं, जिनके समर्थन से पीएम मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने हैं और बीजेपी तीसरी बार सरकार बनाने में सफल हो पाई है। इस सहयोग के बदले, दोनों नेताओं ने अपने-अपने राज्यों के लिए कई महत्वपूर्ण मांगें रखी हैं।

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने विजयवाड़ा, विशाखापत्तनम और अमरावती में मेट्रो परियोजनाओं की मांग की है। इसके अलावा, उन्होंने एक लाइट रेल परियोजना और विजयवाड़ा से मुंबई और नई दिल्ली तक वंदे भारत ट्रेन की मांग की है। नायडू ने पिछड़े जिलों के लिए अनुदान, रामायपट्टनम् बंदरगाह और कडप्पा में एक एकीकृत इस्पात संयंत्र जैसी ढांचागत परियोजनाओं के लिए केंद्रीय सहायता की मांग की है।

दूसरी ओर, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी अपने राज्य के विकास के लिए कई अहम मांगे रखी हैं। उन्होंने राज्य में बुनियादी ढांचे के विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं और अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सहायता की मांग की है। नीतीश और नायडू दोनों ने इस सप्ताह की शुरुआत में पीएम मोदी से मुलाकात की और अपनी मांगों को उनके सामने रखा।

नीतीश और नायडू की ये मांगें उनके राज्यों के विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। अगर केंद्र सरकार इन मांगों को बजट में शामिल करती है, तो इससे बिहार और आंध्र प्रदेश के विकास में नई गति आएगी और वहां के लोगों को बेहतर सुविधाएं मिलेंगी। अब देखना होगा कि पीएम मोदी और उनकी सरकार इन मांगों पर क्या रुख अपनाते हैं और बजट में इन राज्यों को कितनी प्राथमिकता दी जाती है।

इन मांगों के पीछे की मुख्य वजह यह है कि नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू दोनों ही अपने-अपने राज्यों के विकास के लिए प्रतिबद्ध हैं और वे चाहते हैं कि उनके राज्य अधिक से अधिक केंद्र की सहायता प्राप्त करें। इस तरह, मोदी 3.0 का पहला बजट केवल एक वित्तीय दस्तावेज नहीं, बल्कि राजनीतिक सहयोगियों की उम्मीदों और मांगों का प्रतिबिंब भी होगा।

यह देखना दिलचस्प होगा कि बजट में कितनी मांगें पूरी होती हैं और इससे बिहार और आंध्र प्रदेश के विकास पर क्या प्रभाव पड़ता है। दोनों नेता अपने-अपने राज्यों के हित में लगातार प्रयासरत हैं और इनकी मांगों को पूरा करना केंद्र सरकार के लिए भी महत्वपूर्ण हो सकता है।

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