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महाराष्ट्र सरकार ने हिंदी को अनिवार्य बनाने से जुड़ा फैसला वापस लिया

महाराष्ट्र सरकार ने हिंदी को अनिवार्य बनाने से जुड़ा फैसला वापस लिया

 

महाराष्ट्र सरकार को स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य बनाने से जुड़ा निर्णय वापस लेना पड़ा है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने रविवार को ऐलान किया कि पहली से पांचवीं कक्षा तक हिंदी की पढ़ाई को अनिवार्य करने वाले जीआर (सरकारी प्रस्ताव) को रद्द किया जा रहा है। यह कदम राज्य विधानसभा के मानसून सत्र से ठीक एक दिन पहले उठाया गया है, जिसे राजनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

दरअसल, केंद्र की मोदी सरकार की नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के तहत ‘त्रिभाषा फार्मूला’ लागू करने की योजना थी, जिसके तहत छात्रों को तीन भाषाएँ पढ़ना अनिवार्य है। इसी नीति के अंतर्गत महाराष्ट्र सरकार ने हाल ही में हिंदी को पहली से पाँचवीं तक अनिवार्य विषय घोषित कर दिया था। लेकिन राज्य में मराठी अस्मिता को लेकर संवेदनशीलता और क्षेत्रीय दलों के विरोध के चलते यह निर्णय भारी विरोध का कारण बना।

उद्धव ठाकरे और मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने 5 जुलाई को इस मुद्दे पर संयुक्त विरोध प्रदर्शन की घोषणा कर दी थी। राज्यभर में मराठी संगठनों ने भी इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी थी। विपक्षी दलों का कहना था कि यह हिंदी थोपने की कोशिश है और महाराष्ट्र की भाषाई पहचान पर हमला है।

राजनीतिक दबाव को भांपते हुए मुख्यमंत्री फडणवीस ने, न केवल जीआर को वापस लिया, बल्कि इस मुद्दे पर एक समीक्षा समिति भी गठित कर दी है। यह समिति, जिसकी अध्यक्षता पूर्व राज्यसभा सांसद नरेंद्र जाधव करेंगे, यह तय करेगी कि त्रिभाषा नीति के तहत तीसरी भाषा के रूप में कौन-सी भाषा को चुना जाए।

दिलचस्प बात यह रही कि मुख्यमंत्री ने इस फैसले की घोषणा करते हुए यह भी कहने की कोशिश की कि हिंदी को अनिवार्य करने का फैसला विपक्ष की ही मांग के अनुरूप था, और वर्तमान राजनीतिक माहौल को देखते हुए यह निर्णय वापस लिया जा रहा है। हालांकि राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि यह फैसला विपक्षी दबाव के कारण लिया गया है।
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