मद्रास हाईकोर्ट का फैसला, मुसलमान कर सकते हैं चार शादियां
मुस्लिम पुरुष को बहुविवाह का अधिकार है लेकिन उसे प्रत्येक पत्नी को समान तरह से रखना होगा। हाई कोर्ट ने कहा है कि इस्लामिक कानून के तहत पुरुष को बहु विवाह की इजाजत है और उसे एक समान तरह से पत्नियों को ट्रीट करना होगा और अगर वह ऐसा करने में विफल रहता है तो यह क्रुएल्टी के दायरे में आएगा। पति की ड्यूटी है कि वह अपनी पत्नी का सही तरह से देखभाल करे।
इस मामले में मद्रास हाई कोर्ट ने उक्त व्यवस्था देते हुए फैमिली कोर्ट के उस फैसले को बहाल रखा है जिसमें फैमिली कोर्ट ने क्रुएल्टी के ग्राउंड पर पहली पत्नी के फेवर में तलाक की डिक्री पारित की थी। हाई कोर्ट ने इस तथ्य पर गौर किया कि पति और उसके परिवार वालों ने शुरुआत में पहली पत्नी के साथ प्रताड़ना की थी और बाद में मुस्लिम पुरुष ने दूसरी शादी कर ली थी और फिर उसके साथ वह रहने लगा था।
बता दें कि, एक मुस्लिम महिला ने अपनी पति पर गलत व्यवहार करने का आरोप लगाया था जिसमें तिरुनेलवेली फैमिली कोर्ट ने वैवाहिक संबंध खत्म करने का फैसला सुनाया था। इस फैसले के खिलाफ पति ने मद्रास हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। लेकिन हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट का निर्णय बरकरार रखा है।
मामले की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने कहा कि इस्लामी कानून में मुस्लिम पुरुष को चार शादियां करने की अनुमति है लेकिन उसके लिए सभी पत्नियों के साथ समान तरीके से व्यहार करना जरूरी है। अदालत ने पाया कि मामले में पहली पत्नी के साथ उसके पति और सास का व्यवहार क्रूरता से भरा था।
जस्टिस आरएमटी टीका रमण और जस्टिस पीबी बालाजी की पीठ ने कहा कि पहली और दूसरी पत्नी के साथ समान व्यवहार नहीं किया गया। पहली पत्नी को क्रूरता का सामना करना पड़ा। पति दो साल तक पत्नी का भरण-पोषण करने में और तीन साल तक वैवाहिक दायित्व निभाने में नाकाम रहा है।
पहली पत्नी ने आरोप लगाया था कि नवजात बच्चे की मौत हो जाने के बाद पति और सास का व्यवहार उसके प्रति बेहद कठोर हो गया था। महिला ने शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किए जाने की बात भी कही थी। इसके बाद उसके पति ने दूसरी महिला के साथ शादी कर ली थी।
उधर, महिला के पति ने इन आरोपों को खारिज किया है। उसका कहना है कि केवल दूसरी शादी कर लेने भर से पहली पत्नी को तलाक नहीं मिल सकता। पति का कहना है कि वह मेनटेनेंस का पैसा भी दे रहा था और कंप्रोमाइज करने की कोशिश भी की थी लेकिन पत्नी ने इसे मानने से इनकार कर दिया।
महिला को अलग रहने का भी है अधिकार
हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी भी की कि अगर किसी मुस्लिम महिला को अपनी ससुराल में अच्छा माहौल नहीं मिलता है तो उसके पास अलग रहने का अधिकार है। इसके साथ ही पीठ ने फैमिली कोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि मामले को देखते हुए इस निर्णय में दखल देने का कोई कारण नहीं बनता।