जमीयते उलेमा धर्मांतरण विरोधी कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची
जमीयते उलेमाए हिंद ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश सहित कई राज्यों में धर्म परिवर्तन के खिलाफ गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की है। इस याचिका में धर्मांतरण विरोधी कानूनों को चुनौती दी गई है।
याचिका में कहा गया है कि अधिनियम का इस्तेमाल अंतर-धार्मिक जोड़ों को परेशान करने और बुनियादी मौलिक मानवाधिकारों का उल्लंघन करने के लिए किया जा रहा है क्योंकि यह किसी व्यक्ति की निजता पर हमला करके उन्हें अपने धर्म का खुलासा करने के लिए मजबूर करता है।
जमीयते उलेमाए हिंद की ओर से याचिका दायर करने वाले एडवोकेट एजाज मकबूल ने कहा कि यह अधिनियम किसी व्यक्ति की निजता का उल्लंघन करता है क्योंकि यह उन्हें अपने विश्वास को प्रकट करने के लिए मजबूर करता है। उन्होंने कहा कि अधिनियम धर्मांतरितों को परेशान करने का एक उपकरण हैं। इस कानून के कई प्रावधानों की अस्पष्ट और सख्त प्रकृति के कारण, यह धर्म के अभ्यास को रोकेगा।
एडवोकेट मकबूल ने कहा कि अधिनियम लोगों के अपने धर्म को मानने और प्रचार करने के अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा, जिससे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन होगा। याचिका में कहा गया है कि इस तरह के व्यक्तिगत निर्णय की राज्य द्वारा जांच किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर गंभीर आक्रमण है और यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 और 25 का उल्लंघन है। हर धर्म परिवर्तन अवैध है।
गौरतलब है कि उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में हुए बदलावों को पहले सिटीजन्स फॉर पीस एंड जस्टिस (सीजेपी) ने चुनौती दी थी, जिसमें कहा गया था कि इस तरह की कार्रवाइयां संविधान पीठों द्वारा पारित सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के खिलाफ हैं, जिसमें साथी चुनने का अधिकार दिया गया है।