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मतदाताओं को राजनीतिक दलों की फंडिंग का स्रोत जानने का हक़ नहीं, यह दलील मानना मुश्किल: सुप्रीम कोर्ट

मतदाताओं को राजनीतिक दलों की फंडिंग का स्रोत जानने का हक़ नहीं, यह दलील मानना मुश्किल: सुप्रीम कोर्ट

चुनावी बॉन्ड योजना पर संवैधानिक पीठ ने गुरुवार को अपना फ़ैसला सुरक्षित रख लिया है। हालाँकि, इस पीठ ने सुझाव दिया कि वर्तमान योजना में गंभीर कमियों को ध्यान में रखते हुए एक बेहतर चुनावी बॉन्ड योजना तैयार की जा सकती है। इसके साथ ही इसने चुनाव आयोग को निर्देश दिया है कि दो हफ़्ते में इसकी जानकारी दी जाए कि 30 सितंबर, 2023 तक चुनावी बॉन्ड के माध्यम से राजनीतिक दलों को कितना चंदा मिला।

भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, बी आर गवई, जे बी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ सुनवाई कर रही थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सरकार की इस दलील को स्वीकार करना थोड़ा मुश्किल है कि मतदाताओं को राजनीतिक दलों की फंडिंग का स्रोत जानने का अधिकार नहीं है।

सरकार ने इस पर सुनवाई शुरू होने से पहले सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि मतदाताओं को धन का स्रोत जानने का अधिकार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी तब आई है जब वह चुनावी बॉन्ड योजना-2018 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था।

चुनावी चंदे के सवाल पर न्यायमूर्ति खन्ना ने सरकार से कहा, ‘सब कुछ खुला क्यों नहीं कर देते? वैसे भी, हर कोई इस (चुनावी बॉन्ड के माध्यम से चंदा) के बारे में जानता है। पार्टी को इसकी जानकारी है। एकमात्र व्यक्ति जो वंचित है वह है मतदाता। आपका यह तर्क कि इस अदालत के कई फ़ैसलों के बाद मतदाताओं को जानने का अधिकार नहीं है, यह स्वीकार करना थोड़ा मुश्किल है।’

उन्होंने ये टिप्पणी तब की जब केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि 2018 की योजना के तहत जो पार्टी बॉन्ड के माध्यम से चंदा पाती है वह जानती है कि किसने चंदा दिया है, और ऐसी प्रणाली नहीं हो सकती है जहां चंदा पाने वाला और चंदा देने वाले एक दूसरे को नहीं जानें। सब कुछ खुला करने के सवाल का जवाब देते हुए मेहता ने कहा कि इससे दानदाता को उत्पीड़न से बचाने के लिए योजना में जानबूझकर बनाई गई गोपनीयता खत्म हो जाएगी।

बता दें कि भारत सरकार के अटॉर्नी जनरल, आर वेंकटरमणी ने कुछ दिन पहले ही चुनावी बॉन्ड मामले में सुप्रीम कोर्ट में दायर बयान में कहा है कि भारत के नागरिकों को किसी भी राजनीतिक दल की फंडिंग के संबंध में संविधान के अनुच्छेद 19(1) (ए) के तहत जानकारी का अधिकार नहीं है।

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