इज़रायल का युद्ध-विराम की ओर झुकाव और इसके पीछे के कारण
अभी तक, इज़रायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और उनकी कैबिनेट युद्ध को आक्रामक रूप से आगे बढ़ा रहे थे। इज़रायली सेना ने अपनी रणनीतियों में आम नागरिकों के घरों और गांवों को निशाना बनाना शुरू कर दिया था, क्योंकि उनके पास स्पष्ट सैन्य लक्ष्यों की कमी हो गई थी। इसके विपरीत, हर दिन हिज़्बुल्लाह ने इज़रायली सैन्य, सुरक्षा, आर्थिक और कमांड ठिकानों पर सैकड़ों मिसाइल और ड्रोन हमले किए।
इस स्थिति के बीच, अचानक लेबनान में युद्ध रोकने के लिए राजनीतिक प्रयास और युद्धविराम के मसौदे सामने आने लगे। इसके पीछे कई महत्वपूर्ण कारण हैं:
1. आर्थिक नुकसान
इज़रायली अधिकारियों ने स्वीकार किया है कि उत्तरी फिलिस्तीन में युद्ध के कारण पिछले साल 66 अरब डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ है। इसमें केवल बुनियादी ढांचे का नुकसान शामिल है, जबकि सैन्य, हथियार और खुफिया केंद्रों को हुए नुकसान की गणना अभी बाकी है।
2. अमेरिकी और यूरोपीय समर्थन की सीमा
अमेरिका और पश्चिमी देशों ने इज़रायल को समर्थन तो दिया है, लेकिन बिना किसी स्पष्ट रणनीतिक लक्ष्य के इतने बड़े आर्थिक नुकसान को जारी रखना उनके लिए भी अस्वीकार्य हो गया है।
3. सैन्य थकान और जनहानि
इज़रायली सेना में सैनिकों की मानसिक और शारीरिक थकान बढ़ रही है। सेना की क्षमताओं में गिरावट और लगातार हो रहे नुकसान ने उनकी स्थिति को कमजोर कर दिया है।
4. राजनीतिक दबाव
इज़रायली कैबिनेट के भीतर नेतन्याहू को भारी विरोध का सामना करना पड़ रहा है। विपक्षी दल भी मजबूत होकर उभरे हैं, जिससे नेतन्याहू की सरकार पर दबाव बढ़ गया है।
अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य
अमेरिका और पश्चिमी देश इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि नेतन्याहू का यह युद्ध न केवल इज़रायल के लिए, बल्कि उनके अपने हितों के लिए भी खतरनाक साबित हो सकता है। युद्ध से उपजी आर्थिक और राजनीतिक अस्थिरता ने उन्हें राजनीतिक समाधान पर जोर देने के लिए मजबूर कर दिया है।
ईरान और हिज़्बुल्लाह की भूमिका
ईरान ने इस नए राजनीतिक मोड़ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। रूस, सीरिया और लेबनान के साथ मिलकर ईरान ने अपनी रणनीति को मजबूती से लागू किया। इसके साथ ही हिज़्बुल्लाह की सक्रियता ने इज़रायल को युद्धविराम की दिशा में कदम बढ़ाने पर मजबूर कर दिया है।
भले ही अमेरिका और पश्चिम किसी भी परिस्थिति में इज़रायल के हितों का समर्थन करेंगे, लेकिन हिज़्बुल्लाह के प्रभावी हमलों ने उन्हें इस युद्ध की निरंतरता पर पुनर्विचार करने को मजबूर कर दिया है। आर्थिक नुकसान, सैन्य थकावट और अंतरराष्ट्रीय दबाव ने इज़रायल को युद्धविराम के प्रस्तावों की ओर झुकने के लिए विवश कर दिया है।