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सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला, दृष्टिहीन लोग भी “जज” बन सकते हैं

सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला, दृष्टिहीन लोग भी “जज” बन सकते हैं

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाया, जिसमें उसने कहा कि दृष्टिहीन या कम दृष्टि वाले उम्मीदवार अब न्यायिक सेवाओं में पद के लिए चयन में भाग ले सकते हैं। यह फैसला एक बड़ी कानूनी प्रगति है, जो दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा और उनके लिए अवसरों के विस्तार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। कोर्ट ने कहा है कि दृष्टिहीन लोगों को भी न्यायिक सेवाओं में नियुक्ति का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने दृष्टिहीन व्यक्तियों को न्यायिक सेवाओं में नियुक्त किए जाने के अधिकार को बरकरार रखा है।

सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन शामिल थे, ने इस फैसले में कहा कि दिव्यांग व्यक्तियों को केवल उनकी विकलांगता के कारण किसी भी प्रक्रिया से बाहर नहीं रखा जा सकता। कोर्ट ने यह भी माना कि समावेशी दृष्टिकोण को अपनाने के लिए राज्य को सकारात्मक कदम उठाने चाहिए ताकि दिव्यांग व्यक्तियों को न्यायिक सेवाओं में समान अवसर मिल सकें।

इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में मध्य प्रदेश सरकार के नियम को रद्द कर दिया है। इस मामले की उत्पत्ति मध्य प्रदेश में न्यायिक नियुक्तियों को नियंत्रित करने वाले नियमों में निहित है, जिसमें भेदभावपूर्ण भाषा का इस्तेमाल किया गया था। इस वजह से दृष्टिहीन लोग जज नहीं बन पाते थे। इस नियम को एक महिला द्वारा चुनौती दी गई थी, जिसका दृष्टिहीन बेटा न्यायपालिका में जाना चाहता था। जिसके कारण अदालत को एक पत्र लिखा गया था।

निर्णय में कहा गया है कि चयन प्रक्रिया में भाग लेने वाले पीडब्ल्यूडी (विकलांग व्यक्ति) उम्मीदवार निर्णय के आलोक में न्यायिक सेवा चयन के लिए विचार किए जाने के हकदार हैं, और यदि वे अन्यथा पात्र हैं तो उन्हें रिक्त पदों पर नियुक्त किया जा सकता है।पिछले वर्ष 7 नवंबर को पीठ ने देश भर में न्यायिक सेवाओं में बेंचमार्क विकलांगता (PwBD) वाले व्यक्तियों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करने के लिए कई निर्देश जारी किए थे।

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