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भाजपा सत्ता में हो तो कोई आंदोलन नहीं, अन्ना ने तो करवट भी नहीं बदली

अन्ना हज़ारे द्वारा अनशन की घोषणा और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के साथ मुलाक़ात के बाद अपनी घोषणा से पीछे हट जाने पर महाराष्ट्र की सत्तारूढ़ पार्टी शिव सेना ने निशाणा साधते हुए कहा है कि अन्ना को साफ़ बोल देना चाहिये कि वह किस की ओर हैं।
शिव सेना ने अपने मुखपत्र ‘सामना’ में सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे पर निशाना साधा है और उनके द्वारा अपने प्रस्तावित अनशन को रद्द किए जाने पर तंज कसा है। सामना ने अपने संपादकीय में लिखा है कि अब अन्ना को बताना चाहिए कि वो किसान के साथ हैं या सरकार के साथ हैं? संपादकीय का शीर्षक है काफी मुखर है – ‘अण्णा किसकी ओर हैं।

याद रहे कि केंद्र में यूपीए की सरकार में मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते अन्ना दो बार दिल्ली आए और उन्होंने जोरदार आंदोलन किया। हालाँकि इस आंदोलन की मशाल में शुरू से ही तेल डालने का काम भाजपा कर रही थी लेकिन विगत सात वर्षों में मोदी शासन में नोटबंदी से लॉकडाउन तक कई निर्णयों से जनता बेजार हुई, लेकिन अन्ना ने करवट भी नहीं बदली। अन्ना पर आरोप लगते रहे कि आंदोलन सिर्फ कांग्रेस के शासन में करना है क्या? बाकी अब क्या रामराज अवतरित हो गया है?’

सामना ने अपने संपादकीय में आगे लिखा कि, ‘अन्ना द्वारा अनशन का अस्त्र बाहर निकालना और बाद में उसे म्यान में डाल देना, ऐसा इससे पहले भी हो चुका है। इसलिए अभी भी हुआ तो इसमें अनपेक्षित जैसा कुछ नहीं था। भाजपा नेताओं द्वारा दिए गए आश्वासन के कारण अन्ना संतुष्ट हो गए होंगे तो यह उनकी समस्या है। किसानों के मामले में दमन का फिलहाल जो चक्र चल रहा है, कृषि कानूनों के कारण जो दहशत पैदा हुई है बुनियादी सवाल उसे लेकर है। इस संदर्भ में एक निर्णायक भूमिका अन्ना अख्तियार कर रहे हैं और उसी दृष्टिकोण से अनशन कर रहे हैं, ऐसा दृश्य निर्माण हुआ था, परंतु अन्ना ने अनशन पीछे ले लिया। इसलिए कृषि कानून को लेकर उनकी निश्चित तौर पर भूमिका क्या है, फिलहाल तो यह अस्पष्ट ही है।

बता दें कि महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस और केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री कैलाश चौधरी ने कल अन्ना हजारे से मुलाकात की थी और उन्हें सरकार द्वारा उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों पर आश्वासन दिया था। इसके बाद अन्ना ने अपने अनशन को टालने का एलान किया है।

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