भारत-चीन युद्ध में वायुसेना का इस्तेमाल होता तो चीन का आक्रमण धीमा पड़ जाता: CDS
भारत के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान ने 1962 के भारत-चीन युद्ध को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि यदि उस समय भारतीय वायुसेना का इस्तेमाल किया गया होता तो चीन का आक्रमण काफी धीमा पड़ सकता था और जंग की दिशा अलग हो सकती थी। यह टिप्पणी उन्होंने पुणे में दिवंगत लेफ्टिनेंट जनरल एस. पी. पी. थोराट की संशोधित आत्मकथा ‘रेवेली टू रिट्रीट’ के विमोचन कार्यक्रम के दौरान एक रिकॉर्डेड संदेश में की। थोराट, 1962 युद्ध से पहले पूर्वी कमान के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ थे।
सीडीएस चौहान ने कहा कि उस दौर में तत्कालीन सरकार ने वायुसेना को युद्ध में शामिल करने की अनुमति नहीं दी। उनका मानना है कि यह एक गंभीर रणनीतिक गलती थी। उन्होंने तर्क दिया कि वायुसेना के पास छोटे टर्नअराउंड समय, अनुकूल भूगोल और अधिकतम पेलोड क्षमता थी, जिससे चीनी सैनिकों की बढ़त रोकी जा सकती थी। चौहान ने कहा, “उस समय वायुसेना के इस्तेमाल को तनाव बढ़ाने वाला कदम माना गया, लेकिन वास्तव में यह हमारी ओर से चूक थी।”
उन्होंने हाल ही में पाकिस्तान के खिलाफ चलाए गए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का उदाहरण देते हुए कहा कि अब वायु शक्ति सामान्य सैन्य रणनीति का हिस्सा बन चुकी है। मई 2025 में इस ऑपरेशन के दौरान भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान और पीओके में आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया था। चौहान के अनुसार, इस कार्रवाई ने साबित कर दिया कि अब वायुसेना का इस्तेमाल युद्ध की गति और स्वरूप तय करने में निर्णायक है।
सीडीएस ने 1962 की “फॉरवर्ड पॉलिसी” पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि लद्दाख और एनईएफए (वर्तमान अरुणाचल प्रदेश) में हालात पूरी तरह अलग थे, लेकिन दोनों क्षेत्रों में एक जैसी नीति अपनाई गई। चौहान के मुताबिक, यह रणनीतिक दृष्टि से एक बड़ी भूल थी। उस समय लद्दाख में चीन पहले ही भारतीय क्षेत्र में बढ़त बना चुका था, जबकि एनईएफए में भारत का दावा मजबूत था।
जनरल चौहान ने कहा कि मौजूदा सुरक्षा परिदृश्य 1962 से बिल्कुल बदल चुका है। तकनीक, भू-राजनीति और सैन्य रणनीति में व्यापक बदलाव आए हैं। इसलिए उस दौर के फैसलों को आज की परिस्थितियों से जोड़कर आंकना आसान नहीं है, लेकिन यह मानना होगा कि वायुसेना को न झोंकना एक बड़ा अवसर गंवाना था।
उनका संदेश साफ करता है कि इतिहास से सबक लेते हुए भारत ने अब अपनी रणनीति को बदला है। वायु शक्ति को सिर्फ सहायक हथियार न मानकर, निर्णायक शक्ति के रूप में देखा जाने लगा है। यही बदलाव भविष्य के युद्धों की दिशा तय करेगा।

