भारत को G7 से दूर करने पर विचार कर रहा जर्मनी: रिपोर्ट
जर्मनी में वर्तमान में ये बात चल रही है कि क्या भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को G7 ग्रुप की मीटिंग में बुलाया जाए या नहीं. क्योंकि जर्मनी इसी साल जून में होने वाली G7 मीटिंग की मेजबानी कर रहा है.
ब्लूमबर्ग के अनुसार इस मामले से जुड़े लोगों का कहना है कि यूक्रेन युद्ध के बाद रूस की आलोचना करने में आनाकानी की वजह से भारतीय प्रधानमंत्री को बुलाने पर बहस हो रही है. जर्मनी इस बैठक में सेनेगल, साउथ अफ्रीका और इंडोनेशिया को मेहमान के तौर पर बावारिया में होने जा रही बैठक में बुलाने जा रहा है. लेकिन भारत को बुलाने पर अब भी विचार चल रहा है.
बता दें कि भारत उन 50 देशों में शामिल था जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकर परिषद से रूस को निकालने के लिए किए गए मतदान में भाग नहीं लिया साथ ही भारत में अपनी तरफ से रूस पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया है. और भारत रूसी हथियारों का अहम आयातक है. भारत का कहना है कि चीन और पाकिस्तान को रोकने के लिए उसे रूसी हथियारों की मदद चाहिए.
सरकारी प्रवक्ता स्टेफेन हेबेस्ट्रीट का कहना है कि जैसे ही मेहमानों की लिस्ट पर आखिरी निर्णय होता है, राजधानी बर्लिन से इसे लेकर फैसला सुना दिया जाएगा. स्टेफेन हेबेस्ट्रीट ने कहा, चांसलर ने ये साफ कर दिया है कि वो अधिक से अधिक अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों को प्रतिबंधों में शामिल होते देखना चाहते हैं.”
ग़ौर तलब है कि G-7 देशों ने रूस के खिलाफ प्रतिबंधों में नेतृत्व किया है और कुछ ने यूक्रेन को हथियार भी भेजे हैं. वो चाहते हैं कि दूसरे देश भी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन की निंदा करेंगे और रूस के साथ व्यापार, निवेश और ऊर्जा संबंद सीमित करें. लेकिन लैटिन अमेरिका, अफ्रीका, एशिया और मध्य-पूर्व की कई सरकारें ऐसा करने से बच रही हैं.
अगर हम आकंड़े पर नज़र डालें तो मिलेगा कि फरवरी में युद्ध शुरू होने के बाद भारत में रूसी तेल का आयात बढ़ गया है. चांसलर की नजरों से यह छिपा नहीं है,
ब्लूमबर्ग की खबर के अनुसार भारत का कहना है कि वो रूसी तेल खरीदना जारी रखेगा और रूस से काफी सस्ते दाम पर तेल मिल रहा है. इस मामले से जुड़े लोगों का कहना है कि भारत रूस को अतिरिक्त $2 बिलियन का आयात बढ़ाने की योजना रखता है और दोनों देश व्यापार जारी रखने के लिए स्थानीय मुद्राओं में पेमेंट सिस्टम बनाने पर भी काम कर रहे हैं.