पूर्व पीएम मनमोहन सिंह की नेतृत्व क्षमता और साहस की विदेशी मीडिया द्वारा सराहना
डॉ. मनमोहन सिंह के निधन की खबर को विदेशी मीडिया ने भी व्यापक रूप से कवर किया। खासकर पश्चिमी मीडिया में उनके द्वारा भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए दिए गए महत्वपूर्ण योगदान और उनकी विशेषज्ञता का उल्लेख किया गया है। बीबीसी ने इस पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसमें फाइनेंशियल टाइम्स, ब्लूमबर्ग और न्यूयॉर्क टाइम्स के लेखों के अंश शामिल हैं।
ब्रिटिश अखबार फाइनेंशियल टाइम्स ने लिखा, “1991 से 1996 तक वित्त मंत्री के रूप में, मनमोहन सिंह ने राजनीतिक साहस का प्रदर्शन किया और भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए महत्वपूर्ण फैसले लिए। उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था को अंतरराष्ट्रीय व्यापार और निजी निवेश के लिए खोल दिया।” फाइनेंशियल टाइम्स ने आगे लिखा, “ऑक्सफोर्ड से उच्च शिक्षा प्राप्त इस अर्थशास्त्री को उनकी विनम्रता, ईमानदारी और सादगी के लिए जाना जाता था। मनमोहन सिंह को मुख्य रूप से 1991 के आर्थिक सुधारों के लिए याद किया जाता है।
उस समय भारत गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा था। विदेशी मुद्रा भंडार समाप्त हो चुके थे। हालात इतने खराब थे कि भारत को अपना सोना अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के पास गिरवी रखना पड़ा। उस समय भारत के पास इतना विदेशी मुद्रा भंडार भी नहीं था कि वह अन्य देशों के साथ व्यापार कर सके। भारत का विदेशी कर्ज़ 72 अरब डॉलर तक पहुंच गया था। महंगाई, वित्तीय घाटा और चालू खाता घाटा दो अंकों में था।”
1990 में खाड़ी युद्ध के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था पर सीधा प्रभाव पड़ा। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेल की कीमतें बढ़ गईं और भारत में राजनीतिक स्थिति अस्थिर हो गई। 1991 में, नरसिम्हा राव के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार बनी और उन्होंने मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री नियुक्त किया। फाइनेंशियल टाइम्स ने लिखा, “डॉ. सिंह ने सबसे पहले भारत से लाइसेंस राज का अंत किया, जिससे नियंत्रण आधारित अर्थव्यवस्था का दौर समाप्त हुआ। 2-3% की दर से विकास कर रही अर्थव्यवस्था 9% तक पहुंच गई।”
फाइनेंशियल टाइम्स ने यह भी लिखा, “मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री कार्यकाल के पहले दौर को किसानों की कर्ज़ माफी, मनरेगा और आरटीआई के लिए जाना जाता है। इस कार्यकाल में उन्होंने अमेरिका के साथ संबंधों को एक नई ऊंचाई पर पहुंचाया। इससे पहले, परमाणु परीक्षणों के कारण अमेरिका ने कई प्रतिबंध लगाए थे। 2008 में परमाणु समझौते के लिए उन्होंने अपनी सरकार को दांव पर लगा दिया था।”
ब्लूमबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि मनमोहन सिंह की निजी ज़िंदगी लोगों के लिए प्रेरणा है। एक 14 वर्षीय सिख शरणार्थी लड़का, जिसने 1947 में भारत विभाजन के दौरान अपना घर छोड़ दिया था, ऑक्सफोर्ड और कैंब्रिज में पढ़ाई कर भारत का एक उच्च सरकारी अधिकारी बनता है। ब्लूमबर्ग ने लिखा, “मनमोहन सिंह ने यह विश्वास दिलाया कि हम समाजवादी व्यवस्था के बाद भी बाजार आधारित अर्थव्यवस्था में अपने सपनों को साकार कर सकते हैं। शिक्षा और मेहनत के माध्यम से हमारी ज़िंदगी हमारी पिछली पीढ़ियों से बेहतर हो सकती है। सफलता केवल कुछ विशेषाधिकार प्राप्त लोगों तक सीमित नहीं रह सकती।”
आगे लिखा गया, “नवंबर 2016 में, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी की घोषणा की, जिससे 86% चलन में रही मुद्रा अमान्य हो गई, तब मनमोहन सिंह ने इसे एक ‘विनाशकारी कदम’ बताया और कहा था कि इससे संगठित लूट को बढ़ावा मिलेगा। उनकी यह भविष्यवाणी सही साबित हुई।”
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट में यह भी लिखा गया कि “मनमोहन सिंह का निधन ऐसे समय में हुआ है जब भारत में प्रतिभाशाली नेतृत्व की कमी महसूस हो रही है। विकास असमान है, व्यापारियों को लग रहा है कि आर्थिक शक्ति केंद्रीकृत हो रही है, मध्यम वर्ग करों से परेशान है और गरीब सिस्टम से बाहर हो रहा है। भारत में धार्मिक विभाजन बढ़ रहा है।”
न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा, “मनमोहन सिंह के रूप में पहली बार कोई सिख भारत का प्रधानमंत्री बना। सोनिया गांधी ने 2018 में कहा था कि मनमोहन सिंह ऐसे समय में प्रधानमंत्री बने थे जब भारत का धर्मनिरपेक्षता खतरे में था। कुछ ही महीनों में मनमोहन सिंह ने साबित कर दिया था कि शीर्ष पर बैठा व्यक्ति पक्षपातपूर्ण नहीं है और किसी भी समाज या व्यक्ति को डरने की ज़रूरत नहीं है।”