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किसान आंदोलन हुआ मज़बूत , कमज़ोर कड़ियाँ टूट गई हैं, मज़बूत स्तंभ बाक़ी : राकेश टिकैत

केंद्र के विवादित कृषि क़ानून के खिलाफ शुरू हुआ किसान आंदोलन एक बार फिर रफ्तार पकड़ता हुआ दिख रहा है। गणतंत्र दिवस की हिंसा के बाद आंदोलन में जो ढिलाई आई थी, वो बीते दिन गाजीपुर सीमा पर मचे संग्राम के बाद दूर हुई है। किसान नेता राकेश टिकैत के आंसुओं के सैलाब से किसानों में जोश आया है। पश्चिमी यूपी और हरियाणा के अलग-अलग इलाकों से किसान गाजीपुर बॉर्डर पर जुटने लगे हैं।

लाल किले पर गणतंत्र दिवस के दिन हुई घटना के बाद से आंदोलन पर काफी असर पड़ा। किसान संगठनों पर दबाब बनना शुरू हो गया और उन पर तरह तरह के आरोप लगने लगे, हालांकि भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि, एक तूफान आया था, इस तूफान में टहनी, डालियां और खोखले दरख्त टूट गए, अब सिर्फ मजबूत स्तम्भ खड़े हैं।
नवंबर 2020 से दिल्ली की सीमाओं पर इस आंदोलन की शुरूआत हुई । गाजीपुर बॉर्डर पर टिकैत के समर्थकों की भीड़ कम थी। हालांकि मौजूदा समय में टिकैत के ही समर्थक ज्यादा दिखाई दे रहे हैं।

किसान नेता राकेश टिकैत ने बताया, ‘‘ज्यादा भीड़ के लिए व्यवस्था करनी पड़ती है, खेत का काम छूटेगा और यहां कोई काम नहीं है।’’ आंदोलन में आप पांच आदमी बिठा दो और किसान संगठन का झंडा सड़क के बीच में लगा दो, किसी सरकार की ताकत नहीं की उस झंडे को भी हाथ लगा दे। आंदोलन भीड़ से नहीं चलता, आंदोलन का मकसद क्या है उससे चलता है। उन्होंने आगे कहा कि,‘इस तूफान में हल्की टहनियां, डालियां और खोखले दरख्त थे, वह टूट गए, अब सिर्फ मजबूत स्तम्भ खड़े हैं।

आंदोलन में शामिल एक किसान ने इन कानूनों पर कहा कि हमें एमएसपी पर गारंटी चाहिए और सरकार इन तीनों कानून को वापस ले ले, हम यहां से तुरन्त हट जाएंगे। सरकार ने एक जहर का ग्लास दे दिया है, अब उसमें से एक चम्मच कम करें या दो चम्मच, जहर तो जहर होता है। बॉर्डर पर बढ़ती भीड़ पर उन्होंने कहा कि, ‘‘गणतंत्र दिवस पर हम सभी परेड में शामिल होने के लिए आए थे। इसके बाद हम अपने गांव रवाना हो गए, अब फिर आन्दोलन में शामिल होने आए हैं।’’ ‘‘हमारे ऊपर प्रशासन ने दबाब बनाया, जिसके कारण हमारे नेता के आंखों में आंसू आए। उसी आक्रोश में बॉर्डर पर भीड़ बढ़ रही है और जिसके पास जैसी सहूलियत है वह उससे आ रहा है।’’

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