विकसित भारत बनाने में युवाओं से उम्मीदें: निर्मला सीतारमण

विकसित भारत बनाने में युवाओं से उम्मीदें: निर्मला सीतारमण

नई दिल्ली: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2024-25 का जो बजट पेश किया है, उसमें 2 लाख करोड़ के खर्च से तीन योजनाओं को पूरा करने का वादा है, जिससे 1.4 करोड़ युवाओं के रोजगार प्राप्त करने और उनकी योग्यता एवं कुशलता में वृद्धि होने की उम्मीद है। यह अच्छा सपना है और राजनीतिक स्वार्थों से ऊपर उठकर इसका स्वागत किया जाना चाहिए। हालांकि, यह देखना आवश्यक है कि यह सपना केवल सपना ही रहेगा या इसका वास्तविक रूप भी सामने आएगा।

इंटर्नशिप प्लान और रोजगार के अवसर
इस उद्देश्य के लिए वित्त मंत्री द्वारा पेश किए गए सभी योजनाओं और बताए गए सभी प्राथमिकताओं का ध्यान में रखना जरूरी है। इनका समीक्षा करने से कुछ चौंकाने वाली बातें सामने आती हैं। उदाहरण के लिए, ‘इंटर्नशिप प्लान’ के तहत देश की 500 कंपनियों में एक करोड़ युवाओं को एक साल तक इंटर्नशिप कराने का वादा है। इस योजना के तहत हर कंपनी को ऐसे चार हजार लोगों को अस्थायी रोजगार देना होगा जो बेरोजगार हैं। ये लोग साल भर कंपनी में रहेंगे और उन्हें वही वेतन मिलेगा जो अस्थायी कर्मचारियों को दिया जाता है। उनकी मिलने वाली वेतन से केवल 10% सीएसआर (कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी) कटौती की जाएगी।

देश में जो अन्य कानून लागू हैं, उनके अनुसार हर कंपनी को कम से कम 2 लाख वार्षिक देना ही होगा। इससे कम की स्थिति में अदालत का चक्कर लगाना होगा। इस संबंध में जो अन्य सवाल हैं, उन्हें भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता जैसे कि इंटर्नशिप के कारण कंपनियों पर जो बोझ बढ़ेगा, उसे कंपनी और सरकार किस प्रकार आपस में बांटेंगे और यह कि एक साल के बाद इंटर्नशिप करने वालों की कमाई की क्या स्थिति होगी?

कुशलता वृद्धि की योजना
योग्यता एवं कुशलता में वृद्धि करने की योजना या वादे के तहत पांच वर्षों में 20 लाख लोगों को ऐसे हुनर सिखाने का सपना देखा गया है जो उद्योगों की आवश्यकताओं को पूरा करेंगे। इस संबंध में दो महत्वपूर्ण सवाल यह हैं कि कौन सा ऐसा काम या उद्योग ऐसा है जिसमें योग्यता एवं कुशलता रखने वाले की आवश्यकता नहीं है? क्या केवल 20 लाख लोगों को प्रशिक्षित किया जाना या कुशल बनाया जाना पर्याप्त है? संभव है कि यह कार्य क्रमशः किया जाए। अच्छा है लेकिन जो लोग रोजगार में हैं, लेकिन कुशल, योग्य या ईमानदार एवं तत्पर नहीं हैं, उन्हें कुशल एवं तत्पर बनाने की क्या स्थिति होगी?

सवाल बहुत हैं और निश्चित रूप से वित्त मंत्री और सरकार के ज्ञान में भी होंगे, लेकिन आम लोगों को इंतजार रहेगा और ऐसे कदमों का जिनसे उनकी बेरोजगारी समाप्त हो सके या आय के नए रास्ते खुल सकें। लेकिन कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि हालिया बजट विकसित भारत बनाने की दिशा में एक कदम है। लेकिन यदि इस दिशा में और कदम नहीं उठाए गए तो समझा जाएगा कि चूंकि संसदीय चुनावों में बेरोजगारी की शिकायत हर तरफ से की गई थी, इसलिए बजट को बेरोजगारी की शिकायत करने वालों का मुंह बंद करने के उद्देश्य से एक खास रूप में पेश किया गया है।

टैक्स स्लैब में बदलाव और आवासीय सहायता
बेरोजगारी के अलावा रोजगार प्राप्त लोगों को भी कुछ शिकायतें थीं। बजट में इन शिकायतों की ओर भी ध्यान दिया गया है। स्टैंडर्ड डिडक्शन की राशि पचास हजार से बढ़ाकर पचहत्तर हजार करना या टैक्स स्लैब में बदलाव किया जाना एक महत्वपूर्ण कदम है जिससे कम आय करने वाले या नौकरीपेशा व्यक्तियों को लाभ पहुंचेगा। यह भी एक महत्वपूर्ण कदम है कि शहरों में रहने वाले गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों को घर के लिए सरकार 2.2 लाख करोड़ की मदद करेगी। इस उद्देश्य के लिए सरकार जो खर्च करेगी उसका कुल अनुमान 10 लाख करोड़ है।

पूर्वी राज्यों के लिए विशेष पैकेज
मज़े की बात यह है कि सरकार ने भारत के पूर्व में स्थित राज्यों को मदद देने की घोषणा की है। शायद इसकी आवश्यकता भी थी लेकिन बेमानी यह है कि बिहार, झारखंड, बंगाल, ओडिशा के साथ आंध्र प्रदेश को भी पूर्वी राज्यों में शामिल किया गया है। आंध्र तो सदियों से दक्षिण भारत में शामिल या उसका हिस्सा समझा जाता है। क्या अब तेलंगाना के उससे अलग होने या यहाँ चंद्र बाबू नायडू की पार्टी के सत्ता में आने के बाद यह राज्य पूर्वी भारत के राज्यों जैसा हो गया है? आंध्र प्रदेश और बिहार के लिए जिस विशेष दर्जे की घोषणा की गई है या यहां पर्यटन गलियारे और औद्योगिक नोड्स में निवेश के लिए जो योजनाएं बनाई गई हैं, उनके लिए वैश्विक वित्तीय संस्थाओं से ऋण लेना आवश्यक होगा लेकिन ऐसे सभी ऋण कड़ी शर्तों पर ही मिलते हैं।

चुनौतियां और अपेक्षाएं
संक्षेप में, भारत को विकसित देश बनाने का सपना देखना, इसमें युवाओं से उम्मीदें जोड़ना और जिनसे उम्मीदें जोड़ी गई हैं, उन्हें पेश आने वाली मुश्किलों को दूर करना या दूर करने का संकल्प करना तो बहुत सराहनीय है, लेकिन वास्तव में इस राह में जो कठिनाइयाँ सामने हैं या हो सकती हैं, उन पर नजर रखना भी आवश्यक है। यह हमारी बदकिस्मती है कि इस देश में समर्थन के लिए समर्थन और विरोध के लिए विरोध की एक रिवायत चल पड़ी है। अच्छे से अच्छे योजनाओं का विरोध इस आधार पर होता है कि इसे सत्ता पक्ष या विपक्ष ने पेश किया है। अर्थव्यवस्था, रक्षा, स्वास्थ्य और शिक्षा के बारे में खास तौर से यह रवैया सही नहीं है। कम से कम इन्हें वैचारिक या क्षेत्रीय मतभेदों से ऊपर उठकर देखना जरूरी है।

इसी बजट का उदाहरण लीजिए, अगर इसमें अच्छी बातें हैं, देश को विकसित देश बनाने की दिशा में कदम उठाने का संकल्प है, तो विपक्ष उनसे सहमत क्यों नहीं होता? और अगर इस बजट में कुछ बातें बेमानी हैं, जैसा कि ऊपर संकेत किया गया है और विपक्ष उनकी ओर संकेत कर रहा है, तो सरकार इसे अपनी प्रतिष्ठा और अहं का मुद्दा क्यों बनाए हुए है? क्या सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों मिलकर जनता को भूख, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाने का रास्ता नहीं निकाल सकते? अगर नहीं निकाल सकते, तो दोनों अपने कर्तव्यों के निर्वाह में कोताही कर रहे हैं।

युवाओं में बेरोजगारी और बड़ों बुजुर्गों में जान-माल की असुरक्षा को दूर किया जाना आज का सबसे बड़ा मुद्दा है और इसे हल करना सत्ता पक्ष के लिए भी जरूरी है और विपक्ष के लिए

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Hot Topics

Related Articles