हर किसी को शाकाहारी नहीं बनाया जा सकता: कलकत्ता हाईकोर्ट
कलकत्ता हाईकोर्ट ने पशु बलि से संबंधित एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि यह अवास्तविक अपेक्षा है कि पूर्वी भारत में हर व्यक्ति शाकाहारी होगा। दक्षिण दिनाजपुर के एक मंदिर में पशु बलि का प्रचलन है। अखिल भारतीय कृषि गौसेवा संघ द्वारा दाखिल की गई एक जनहित याचिका में मंदिर में 10,000 जानवरों की बलि पर रोक लगाने की मांग की गई है।
जस्टिस विश्वजीत बोस और जस्टिस अजय कुमार गुप्ता की अवकाशकालीन पीठ में इस मामले की सुनवाई हुई। बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, दोनों जजों की पीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा कि हर किसी को शाकाहारी बनाना संभव नहीं है। राज्य की ओर से महाधिवक्ता किशोर दत्ता पेश हुए। अदालत ने महाधिवक्ता का उदाहरण दिया। दोनों जजों की पीठ ने कहा कि यदि याचिकाकर्ता का अंतिम उद्देश्य पूरे पूर्वी भारत को शाकाहारी बनाना है तो यह संभव नहीं है। महाधिवक्ता मछली खाए बिना एक दिन भी नहीं रह सकते। महाधिवक्ता ने यह स्वीकार किया कि वे मछली खाए बिना नहीं रह सकते। उन्होंने कहा, “मैं बहुत अधिक मांसाहारी हूँ।”
अदालत ने सवाल किया कि क्या याचिकाकर्ता यह प्रतिबंध सिर्फ मंदिर के मामले में चाहते हैं? या संपूर्ण रूप से पशु बलि रोकने की मांग के साथ यह जनहित का मामला है? इसके जवाब में याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि यह मामला सिर्फ एक मंदिर का है। स्पष्ट है कि यह मामला दक्षिण दिनाजपुर के बौला रक्षक काली मंदिर का है, जहाँ हर वर्ष नवंबर में रस पूर्णिमा के समारोह के दौरान हजारों जानवरों की बलि दी जाती है।
याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत को बताया कि पशु बलि का प्रचलन संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत आवश्यक धार्मिक प्रथाओं के अंतर्गत नहीं आता। हालाँकि, इस दावे पर दोनों जजों की पीठ ने सवाल किया कि आप यह कैसे कह सकते हैं? आप इस निष्कर्ष पर कैसे पहुँचे? आप किस आधार पर कहते हैं कि यह आवश्यक धार्मिक प्रथाओं में नहीं आता? उत्तर भारत की धार्मिक प्रथाएँ इस क्षेत्र बंगाल और पूर्वी भारत की धार्मिक प्रथाओं से पूरी तरह मेल नहीं खाती हैं। यहाँ तक कि इस पर भी बहस जारी है कि क्या काल्पनिक पात्र शाकाहारी थे या मांसाहारी। अदालत ने कहा कि इस मामले को इस तरह सीमित नहीं किया जा सकता। कुछ लोग चिकन खाते हैं लेकिन मुर्गी का वध होते हुए नहीं देख सकते।
सुनवाई के एक चरण में महाधिवक्ता किशोर दत्ता ने कहा कि इस जनहित मामले में जनहित के मुद्दों की कमी है। उन्होंने कहा कि यह मामला याचिकाकर्ता बनाम मंदिर प्रबंधन का है। इसमें ‘जनहित’ जैसा कुछ नहीं है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने आदेश का भी उल्लेख किया, जिसमें कहा गया था कि अदालत पशु बलि पर प्रतिबंध का आदेश नहीं दे सकती। संसद या विधानसभा ही कानून बनाकर प्रतिबंध लगा सकती है। इसी समय महाधिवक्ता ने अदालत में पशु क्रूरता निवारण अधिनियम की धारा 28 का भी हवाला दिया। इस धारा में धार्मिक कारणों से किसी समुदाय को पशु बलि की अनुमति देने का भी उल्लेख है।
याचिकाकर्ता के cने पशु बलि से होने वाले पर्यावरण प्रदूषण के मुद्दे पर भी अदालत का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया। हालाँकि, अदालत ने कहा कि यदि इस प्रक्रिया से पर्यावरण को नुकसान होता है तो राज्य सरकार को कार्रवाई करनी चाहिए। जस्टिस बोस ने याचिकाकर्ता के वकील से सवाल किया, “यदि अदालत सभी पशु बलियों पर प्रतिबंध का आदेश देती है, तो यह कैसे प्रभावी होगा?” इस संबंध में एक मामला पहले से ही हाई कोर्ट में लंबित है। अदालत ने इस अवकाशकालीन मामले को पिछले मामले के साथ जोड़ने और इसे मुख्य cकी पीठ में स्थानांतरित करने का भी आदेश दिया।


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