दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को पिछले साल उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए सांप्रदायिक दंगों के सिलसिले में गिरफ्तार जेएनयू छात्रों नताशा नरवाल और देवांगना कलिता की जमानत याचिका पर मंगलवार को आदेश सुरक्षित रख लिया है।
जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और अनूप जयराम भंभानी की पीठ ने नरवाल और कलिता के वकील की दलीलें सुनीं और जमानत याचिकाओं पर अपना आदेश को सुरक्षित रख लिया।
दोनों छात्रों की और से पेश अधिवक्ता अदित एस पुजारी ने पीठ के सामने दलीलें दी कि उनके मुवक्किलों को फर्जी मामले में फंसाया गया है।
दिल्ली पुलिस का प्रतिनिधित्व करने वाले विशेष लोक अभियोजक (एसपीपी) अमित महाजन ने दलीलों का विरोध किया और दावा किया कि दंगों के दौरान किए जा रहे कृत्यों के बारे में नरवाल और कलिता को अच्छी तरह से पता था और इन दोनों को ये भी पता था कि इससे ऐसे परिणाम सामने आएंगे जो विनाशकारी हो सकते हैं। साथ ही पुलिस ने ये कहा था कि वो देश की एकता, अखंडता और सद्भाव को खतरे में डालने की एक बड़ी साजिश का हिस्सा थे।
नरवाल और कलिता पिंजरा तोड़ समूह के सदस्य भी हैं। पुलिस ने उन्हें पिछले साल मई में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए सांप्रदायिक दंगों के सिलसिले में गिरफ्तार किया था और वे न्यायिक हिरासत में हैं ।
उन पर दंगा, गैरकानूनी तरीके से एकत्रित होने और हत्या के प्रयास सहित भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था।
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (CAA) समर्थकों और प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसा के बाद 24 फरवरी 2020 को उत्तर-पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक झड़पें हुईं जिसमे कम से कम 53 लोगों की मौत हो गई थी और लगभग 200 लोग घायल हो गए थे।
ट्रायल कोर्ट ने 28 जनवरी को उनकी जमानत याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि उनके खिलाफ लगाए गए आरोप सही थे और वर्तमान मामले में आतंकवाद विरोधी कानून के प्रावधानों को सही ढंग से लागू किया गया है।