वक़्फ़ जेपीसी में ग़ैर-सम्बंधित लोगों को बुलाए जाने पर आलोचना
वक़्फ़ संशोधन बिल पर पुनर्विचार के लिए बनाई गई संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के काम करने के तरीके पर समिति में मौजूद विपक्षी सदस्यों द्वारा सवाल उठाए जाने के साथ अब समिति के चेयरमैन की नीयत पर भी संदेह जताया जा रहा है। उन पर आरोप लगाया जा रहा है कि वे जानबूझकर असली हितधारकों (जिनके हित वक़्फ़ बिल से जुड़े हैं) से अधिक उन व्यक्तियों और संस्थाओं को समिति में प्रतिनिधित्व का अवसर दे रहे हैं जो वक़्फ़ बिल में मोदी सरकार द्वारा प्रस्तावित संशोधनों का समर्थन कर रहे हैं।
सोमवार को भारतीय बार काउंसिल का रुख सुनने के बाद, जिसने वक़्फ़ बिल में संशोधन का समर्थन किया है, JPC के चेयरमैन गुरुवार को कर्नाटक का दौरा करेंगे। यहाँ वक़्फ़ जमीन पर अवैध कब्जा करने वाले किसानों को वक़्फ़ बोर्ड ने नोटिस दिया है, जिसके खिलाफ वे विरोध कर रहे हैं। जगदंबिका पाल उन किसानों से मुलाकात कर वक़्फ़ बिल पर उनका रुख भी जानेंगे। वक़्फ़ संपत्तियों पर कब्जा करने वाले किसानों के समर्थन में बीजेपी असाधारण रूप से सक्रिय है और उसने समिति को यहाँ से “जमीनी रिपोर्ट” भेजने की भी घोषणा की है।
गौरतलब है कि संयुक्त संसदीय समिति पर आरोप है कि वह असली हितधारकों को नज़रअंदाज कर रही है। संदेह व्यक्त किया जा रहा है कि चूंकि संसद के शीतकालीन सत्र के पहले सप्ताह में समिति को रिपोर्ट पेश करनी है, इसलिए चेयरमैन जल्दबाजी में हैं और उन पर प्रस्तावित संशोधनों के समर्थन में रिपोर्ट प्रस्तुत करने का दबाव है। याद रहे कि मंगलवार को भारतीय बार काउंसिल ने वक़्फ़ अधिनियम में संशोधन का समर्थन किया और समिति के समक्ष पेश होने के बाद दावा किया कि उसने समिति के सामने एक संतुलित प्रस्ताव रखा है।
बार काउंसिल ने वक़्फ़ काउंसिल और बोर्ड में ग़ैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने का समर्थन किया और ट्रिब्यूनल के अधिकारों को सीमित करने पर भी जोर दिया है। हालाँकि, प्रस्ताव में दावा किया गया कि यह संतुलित है, फिर भी इसमें बिल में प्रस्तावित बातों का समर्थन ही शामिल है। ध्यान देने योग्य है कि संसद की संयुक्त समिति लगातार ऐसे लोगों को राय देने के लिए बुला रही है जिनका वक़्फ़ से कोई संबंध नहीं है। इस वजह से समिति की बैठकों में भी तनावपूर्ण माहौल उत्पन्न हो रहा है। पिछले सत्र में मारपीट की नौबत तक पहुँच गई थी।