तांबे की कमी से अडानी ग्रुप की मुश्किलें बढ़ीं
अडानी ग्रुप की प्रमुख कंपनी अडानी एंटरप्राइज़ेज़ के शेयरों को आज बड़ा झटका लगा। यह खुलासा होने के बाद शेयरों में तेज़ गिरावट दर्ज की गई कि गुजरात में स्थित इसका तांबा स्मेल्टर अपनी पूरी क्षमता पर चलाने के लिए जितना तांबा चाहिए, उसका दसवां हिस्सा भी हासिल नहीं कर पा रहा है।
कितना तांबा चाहिए और कितना मिल रहा है?
रिपोर्टों के अनुसार, अडानी ग्रुप को गुजरात में लगभग 2.1 बिलियन डॉलर के तांबा स्मेल्टर को साल में 5 लाख टन तांबा-अयस्क (कॉप़र ओरे) की ज़रूरत होती है, लेकिन अभी वह उसका दसवां हिस्सा भी नहीं जुटा पा रहा है। कस्टम के आँकड़ों के मुताबिक BHP ग्रुप ने केवल 4,700 टन सप्लाई की, जबकि अन्य खेप ग्लेनकोर और हडबे से आईं। अडानी एंटरप्राइज़ेज़ की सहायक कंपनी कच्छ कॉपर ने कई देरी के बाद जून में धातु प्रोसेसिंग शुरू की, लेकिन आँकड़ों से पता चलता है कि कंपनी अभी भी अपनी वार्षिक आवश्यकता के मुकाबले बहुत कम मात्रा ही प्राप्त कर सकी है।
ब्लूमबर्ग के मुताबिक, इस साल के पहले 10 महीनों में कंपनी ने सिर्फ 1.7 लाख टन कॉपर कंसन्ट्रेट आयात किया, जबकि इसकी प्रतिद्वंद्वी हिंदालको ने इसी अवधि में 10 लाख टन से अधिक आयात किया। स्मेल्टर को पूरी क्षमता से चलाने के लिए लगभग 1.6 लाख टन कंसन्ट्रेट की ज़रूरत होती है। कच्छ कॉपर एक नया खिलाड़ी है और वह चार वर्षों में अपनी वार्षिक क्षमता को बढ़ाकर 10 लाख टन करने की योजना बना रहा है, लेकिन वैश्विक सप्लाई की तंगी के कारण इसे अपनी यूनिट को सक्रिय रखने के लिए और ज़्यादा खर्च करना पड़ सकता है।
तांबे की कमी क्यों हो रही है?
दुनियाभर में खनन कार्य बाधित होने के कारण इस साल तांबा स्मेल्टरों को सप्लाई में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। बड़े उत्पादकों में चिली की सरकारी कंपनी कोडेल्को भी शामिल है। इसके अलावा चीन तेज़ी से अपनी स्मेल्टिंग क्षमता बढ़ा रहा है, जिससे लाभ मार्जिन कम हुआ है और तांबे की सप्लाई प्रभावित हुई है। कई उत्पादकों ने उत्पादन घटा दिया है या संयंत्र बंद कर दिए हैं। नतीजतन, इस वर्ष खनन कंपनियों को मिलने वाले ट्रीटमेंट और रिफाइनिंग चार्जेज़ रिकॉर्ड स्तर पर गिर गए हैं।

